तरीया कलजुग की महाराज केणो नहीं माणे खावन्‍द को tariya kaljug ki maraj keno nahi mane khavand ko

 

तरीया कलजुग की महाराज,

केणो नहीं माणे खावन्‍द को,

न माने परणिया को ।।टेर।।

 

ससुराजी को कहणो मानती,

यो मालिक है घर को।

सासूजी की चोटी पकड़ ने,

काम कराती घर को।।1।।

 

नणदल बेटी ऐसी बोले,

सामे लेवे लबरको।

सगा देवर पर ऐसी रपटे,

ज्‍यू माखन पर मनखो।।2।।

 

देराणी के पकड़ पछाटी,

जेठाणी के ठरगो।

सगा जेठ की मूंछ उपाड़ी,

मार्यो एक हचड़को।।3।।

 

घर का धणी तो ऊबे धूजे,

देख रांड को ठरको।

कहत कबीर सुणो भाई साधू,

घर घर में यो खलको।।4।।

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