दलाली हीरा लाल की जी मारा सतगरू दीनी रे बताय dalali hira lal ki mara satguru dini re batay

 

दलाली हीरा लाल की जी,

मारा सतगरू दीनी रे बताय।।टेर।।

 

लाल लाल सब कोई कहे,

सबके पल्‍ले लाल।

खोल पल्‍लो परखी नहीं,

भटकत फिरे है कंगाल।।1।।

 

लाल पड़ी बजार में,

खलक उलांग्या जाय।

आयो हीरा को पारखू,

चुपके से लीनी रे उठाय।।2।।

 

साध साध सब एक है जी,

ज्‍यूं  आपू का खेत।

कोइक करणी लाल है जी,

कोइक करणी सफेद।।3।।

 

सतगरू बैठा समंदरा,

नीर भर्यो अणतोल।

थू कोरो क्‍यू रह गयो,

ज्‍यूं पत्‍थर में टोल।।4।।

 

सतगरू मारा सूरमा,

दई सबद की चोट।

गोला भावे ज्ञान का,

तोड़े भरम का कोट।।5।।

 

आपो जाही आपदा,

सांसो ज्‍याही सोच।

कहे कबीर कैसे मिटे,

दोनो ये दिरग रोग।।6।।

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