बना डोरी जल भरे कुवा पर बना शीश की पणिहारी bana dori jal bhare kuva par bana shish ki panihari

 

भो बिना खेत,खेत बिना बाड़ी,

जल बिना रहट चले भारी।

बना डोरी जल भरे कुवा पर,

बना शीश की पणिहारी।।टेर।।

 

शिर पर घड़ो घड़ा पर जारी,

ले घाघर घर क्‍यू चाली।

बीणती करू उतार बेवड़ो,

देखत ख्‍याली मुस्‍कानी।।1।।

 

बिना अन्‍जल के करे रसोई,

सासू नणद की वो प्‍यारी।

देखत भूख भगे स्‍वामी की,

चत्र नार की चतराई।।2।।

 

बिना धरणी एक बाग लगाया,

बना वृक्ष एक बेल चढ़ी।

बना शीश का खायक मुरगा,

बाड़ी में चुगता घड़ी घड़ी।।3।।

 

धनुष बाण ले चढ्यो शिकारी,

न धनुवे पर बाण चढ़ी।

मुरगा मार जमीं पर डारा,

ना मुरगा के चोट लगी।।4।।

 

कहे कबीर सुणो भाई साधू,

यह पद है कोई निरवाणी।

अणी भजन की करे खोजना,

वो ही संत है सुरज्ञानी।।5।।




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