होठ कण्ठ जीब्या से न्यारा,जीब्या से न्यारा।
न लख सबद निरखोजी निजधारा।।टेर।।
सात सबदा का करोजी बिचारा,
तराम सबद कुण अधिकारा,
कुण सबद से थे उतरोला पारा।।1।।
न लख इ पद का थे करोजी बिचारा,
ये पद तो पैदा से न्यारा,
जाणे कोई जाणनहारा।।2।।
आद सबद से आरम्भ सारा,
न लख सबद उपावण हारा।
सबद से पारस रूप रस गंधा,
चित मन बुद्धि अहंकारा।।3।।
सोहं सबद सूं हलप उचारा,
हली हलप चली चौधारा।
वां से उपनी तीनूई धारा,
धार मुकार के बीच है करतारा।।4।।
खट ज्योती है न्यारा,ज्योती
है न्यारा,
वां में है आपका अनुसारा।
नाभ्या करण पुराण अठारा,
पांच तीन में पच पच हारा।।5।।
भक्ति के काज चूई निसारा,
ओम सोम मे उलझग्या सो न्यारा।
कसीविध होवेला वांका,
भव जल पारा।।6।।
कहवे दौलजी सबद निज धारा,
अणी माये सात सबदा का हन्सारा।
इणी विध होला वांका,
भव जल पारा।।7।।
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