गरूजी बिना जीवड़ो कैसे पावे धीर,
कैसे पावे धीर जीवड़ो कैसे पावे धीर।।टेर।।
जो जन सतगरू भेटिया,
राजा भया फकीर।
राज पाट खजाना छोड्या,
अविद्या छोड़ जंजीर।।1।।
गरू मिलन की रा बताऊ,
मिले नीर में नीर।
गुरू मुख बादल प्रेम का,
सुख सागर की तीर।।2।।
भाग भला जो सतगरू पाया,
लागो कलेजे तीर।
देवा माये देव गरूजी,
पीरां माये पीर।।3।।
लखमीराम गरू शरणा माये,
निज मन बांधी धीर।
हरिराम की बिणती रे,
भाग पुरबलो हीर।।4।।
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