साधू भाई सुुुणो बड़द भक्ति का कर दिल साफ काप नहीं रखना sadhu bhai suno badad bhagti ka kar dil saaf


साधू भाई सुुुणो बड़द भक्ति का,
कर दिल साफ काप नहीं रखना।
पण्‍ड में पाव रत्‍ती का सरधू भाई।।टेर।।

सन्‍त सभाव सुणो सतवाद्या,
केवल लच भक्ति का।
डड की नींव दुरस कर दीज्‍यो,
बणे महल मुक्ति का।।1।।

आटू असट दवादस अजपा,
लखण बतीसो नीका।
सोला सार पांच खण कहिये,
चार कलश करणी का।।2।।

शील संतोष सहज धुन कहिये,
नरभे ज्ञान तिरगुण का।
करो बिचारा भंभेक भजन का,
सात शब्‍द सुणे जींका।।3।।

अंतकरण का अंग पलटावो,
दो जावण जुगती का।
तज दस दोष मोक्ष फल पावे,
जीके कइ कारण मुगत का।।4।।

नरबल नर सीगा साज,
मुख मारग मुगत का।
सोला सार बचन के सारे,
जतन राखजो जीेका।।5।।

धरिये दृष्टि नाशका ऊपरे,
नरमल नीर उसीका।
छ: सौ सांंस कैसा कहिये,
रटिया नाम हरि का।।6।।

 कर जतन मतन सब त्‍यागजो,
जहां मन जोग जती का।
धुुर लग अटल चले नहीं,
चित मन आसण अगड़ मती का।।7।।

शील संतोक तो समरण राखो,
त्‍याग करो तपती का।
समरण इष्‍ट हरि रस पीदो,
जांके ओर रस सब फीका।।8।।

भक्ति भाव क्षमा आदरणी,
धीरज लच्‍च धरती का।
दिल दरियाव समझ का सागर,
कारण करोड़पति का।।9।।

हर कर ने हरिजन आया,
मन भर साद मती का,
जोग बिजोग कछू नहीं जाणे,
संत समागम नीका।।10।।

उद बुद धार उलजे उर में,
कर दो रोज मजी का।
काटो करम पास भरम दया,
मौसम नहीं मुगती का।।11।।

कोइक दोष अकर का टालो,
कोइक बार तथी का।
कोइक घर आदी रम उलजिया,
भरम मिटा नहीं जी का।।12।।

तीन दोष तन का टालो,
तीन दोष मन जी का।
चार दोष बचन का टालो,
और दोष है कीका।।13।।

पालो नेम भरम न राखो,
नगतर बार तथी का।
सदाव्रत बांटे सतवादी,
जारे सरबन्‍द नीका।।14।।

पतिव्रता जार नार कहीजे,
पाले वचन पत‍ि का।
दावणगीर करे नहीं बचन कूं,
जीने सहज बड़द शक्ति का।।15।।

साजे संत पंत का पूरा,
जोगाराम मुगती का।
कर निज धरम कर गुरू सेवा,
चढ़े कलश करणी का।।16।।

दौलोजी कहे भाग जीका बढिया,
पुन्‍न पुरबला तीका।
मोर छाप परवाणा लीना,
कारज सरिया जीका।।17।। 

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