लोभीड़ो जाणे अमर मारी काया,
थोड़ा जीबा के खातर कई जोड़े माया।
धन जोबन बादल वाली छाया।।टेर।।
जल की भींत पावन का थम्भा।
रूक गया पावन सतगुरां वाली माया।।1।।
काची काची मटकियां भरिया ठण्डा पाणी।
सुस गया नीर कमलागी काया।।2।।
जंगी जंगी पेड़ गहरी गहरी छाया।
छाया तो मारे सतगरू वाली माया ।।3।।
सोना रा महल रूपा केरा छाजा।
छोड़ चल्या काया नगरी का राजा।।4।।
जंगी जंगी सांकलिया जकड़ बंधिया भेंडा हस्ति,
टूट जावे सांकलियां छूट जावे हस्ति।।5।।
बोल्या गोरखजी मछान्तर का चेला।
लदगी फौजा पड्या रहग्या डेरा।।6।।
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