ओम जय गरूदेव हरे,
तन मन धन से करूं आरती।
सब ही विघन टरे।।टेर।।
पांच तत्व पच्चीस प्रकृति,
स्थूल रूप धरे।
भक्त जनो के कारणे,
विश्वरूप धरे।।1।।
दस इन्द्री पांच प्राण मन,
बुद्धि सूक्ष्म रूप करे।
सत्रह तत्व शरीर धार के,
तेजस लहर करे।।2।।
अपने आप को जाना नहीं,
कारण नाम धरे।
अविद्या ऊपर छाने से,
प्राज्ञ वास करे।।3।।
तीन शरीर को जाणन हारा,
इनसे रहत परे।
महा कारण उन्ही का नाम है,
तुर्या राज करे।।4।।
प्रेमानन्द शीतल स्वामी,
तुर्या अतीत परे।
भैरवदास सतगरू के शरणे,
गरू में वास करे।।5।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें