बारह पेड़ी बावन कचेड़ी,
हुकम झरोखा लागे है।
नौ पेड़ीऊं नसरणी लागे,
आगे अनगड़ सागे है।।टेर।।
परहर बाणी नाव निशाणी,
परसन्ती परसण जागे।
मदा पावन फूलड़ा छाई,
फल बेकरी के लागे।।1।।
परा पछन्ती मदा बेखरी,
ऊ हू माये रागे।
बाणी ने धार बिचार देख लो,
भजन नाम कंवल से जागे।।2।।
आवत जावत पावन पछाणो,
शील तेज घर जागे।
पांच पच्चीस तीन बावन बारा,
ओम सोम लेखे लागे।।3।।
उठत बैठत आद अन्त,
पीव पूरण के प्यागे।
झीणी झीणी मंदरी बाणी उठे,
उरद हुंकारो लागे।।4।।
सांसम सांस, सांस से उसांसा,
हरदम डंका लागे।
मन मकट का मट जावे शंका,
एकतार धुन लागे।।5।।
राचक रीता पूरण पूरा,
कुम्भक भरबा लागे।
नहचे शुर की रटना राखो,
एकतार धुन लागे।।6।।
गेबी गोप अनोखी माला,
बन मणिया बन धागे।
बनकर मणिया पावन से धागा,
सुरतीऊ रटना लागे।।7।।
मन पावना सुरती न पूंगे,
उठे अंक लेख नहीं लागे।
शशि भाण तारा नहीं पूंगे,
जठे छाया धूप नहीं लागे।।8।।
अजपा सिवरण सेन बतावो,
तार बंकनाल लागे।
लागो तार तरबीणी से आगे,
बन सिवरण सुणायो सागे।।9।।
अखण्ड भजन परखण्डा जागे,
गाज बाज सुण्यो सागे।
अनहद भेद में होवे आवाजा,
एकतार धुन लागे।।10।।
भंवर गुफा में भजन गूंजे,
तार तीन गुणा आगे।
दे रूणकार राग चढ्यो ऊंचो,
बन सिवरण सुण्यो सागे।।11।।
नाम का नाम पेली काऊ पाया,
कइक भाग आगला जागे।
गुजर गरीबो कनीरामजी बोले,
सतगरू दरसाग्या सागे।।12।।
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