मन रे राम भजे डर कांको,
भजे ज्यांरो विश्वास राखज्यो,
सायब भीडू थांको ।।टेर।।
सरियादे सायब जी ने सिवरिया,
राख भरोसो वांको।
मन्जारी का बच्या उबार्या,
आकोई आवड़ो पाको ।।1।।
प्रहलादजी परमेश्वर ने सिवरे,
सार्यो काज संज्या को।
खम्भ फाड़ धणी दरसण दीदा,
बचन फल्यो पिता को ।।2।।
इधर केरवा उणर पांडवां,
है मरबा को नाको।
पांडवा की भीड़ कशन चढ़ आया,
बाल हियो नहीं बांको ।।3।।
द्रोपदी को चीर दुशासन खींचे,
चहुं दिश व्हग्यो हाको।
खेच्यो चीर खेच्यो नहीं वासे,
पापी पच पच थाको ।।4।।
भारत में भंवरी का इंडा,
बल्यो कालजो वांंको।
गज की घंटा इंडा पर ढाकी,
तीर मोकलाई फांको ।।5।।
केरवा को मू आयो खन्दायो,
नहीं है दोष गुरां को।
रख विश्वास थापाना थापी,
गोड लग्यो आम्बा को ।।6।।
गज और ग्राह लडे जल भीतर,
लड़त लड़त गज थाको।
तिल भर सूण्ड रही जल बारे,
गरूड़ छोड़ कर भागो ।।7।।
कीने केऊ कीने सुणाऊ,
सार्यो काम गणा को।
''सूरदास'' की आई वीणती,
पत पाना की राखो ।।8।।
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