सबसे ऊंची प्रेम सगाई,
दुर्योधन के मेवा त्यागे।
साग विदुर घर खाई ।।टेर।।
झूटे फल शबरी के खाये,
बहु विधि स्वाद बताई।
प्रेम के बस नृप सेेेवा कीनी,
आप बणे हरि नाई ।।1।।
राजसूू यज्ञ युधिष्ठर किनो,
तामे झूठ उठाई।
प्रेम के बस पारथ रथ हांक्यो,
भूली गयो ठकुराई ।।2।।
ऐसी प्रीती बढ़ी वृंदावन,
गोपियन नाच नचाई।
सूर कूर इही लायक नाही,
कहा लग करूं बड़ाई ।।3।।
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