कदी चालाला उण देश में मारी हैली,
गिया नर पाछा नहीं आय।
अणी देश रो लोग अज्ञानी,
हेली पल पल परला में जाय ।।टेर।।
निर्गुण सेरी सांकड़ी मारी हेली,
चढियो न उतरियाे जाय।
ऊंची चढूू तो नीची गिर पडू मारी हेली,
जीव अफरता जाय ।।1।।
हीरा से जड़ी या जालरी मारी हेली,
मोतिया जड़ी है गनात।
कंकू बरणी दायमी मारी हेली,
ओ ही पियाजी को देश ।।2।।
नहीं ऊगे नहीं आथसी मारी हेली,
नहीं अंधेरा होय।
एक भाण की क्या पड़ी मारी हेली,
करोड़ भाण परकास ।।3।।
नहीं बरसे नहीं ओल रे मारी हेली,
सूखा न हरियाे होय।
कहत ''कबीरा'' की बिणती मारी हेली,
मरे नहीं बूढ़ा होय ।।4।।
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