हेली मारी नहीं रे धरण असमान,
उठे तो मारी सुरता लागी ऐ हेली।
चन्दा नहीं रे उठे भाण,
भाण बना बहुत उजियालो हेली।।
परलोका मत जाय हेली,
नहीं तो उठे लाल कालो पीलो हेली।
परलोका मत जाय हेली।।1।।
ओलक लेणा यो ही उणियारो हेली,
शीतल बरण मारो श्याम ।
नहीं तो उठे लाल कालो पीलो हेली।
परलोका मत जाय हेली।।टेर।।
हेली मारी उरद सुरद के बीच,
उठे तो एक जगड़ो मच्यो ये हेली।
सूरा लड़े ये रण मांय,
कायर को उठे कोनी पतियारो हेली ।
परलोका मत जाय हेली।।2।।
हेली मारी गूंगो गावे ये उठे राग,
बहरो तो उठे सुणबा वालो हेली।
पांगलो नाच करे,
आन्दो तो उठे नरखण वालो हेली।
परलोका मत जाय हेली।।3।।
हेली मारी संध कीजे तीन सौ न तीस,
जिण पर ताे एक तखत हजारो हेली।
जिण पर सुन्न अकीस,
जिण पर तो मारो सिरजन हारो हैली।
परलोका मत जाय हेली।।4।।
हेली मारी भंवर गफा के मांय,
उठे तो एक तपसिड़ो तापे हेली।
नहीं तो उठे तापनवालो हेली,
धूणा नहीं रे भभूत।।5।।
हेली मारी मलग्या रे नाथ गुलाब,
गरूजी मलिया बहुत मतवाला हेली।
मंदरिया में बहुत उजियालाेे हेली,
गावे भवानी नाथ ।।6।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें