कैसे कह समझाऊ हेली,
बेगम देश की बात।।टेर।।
क्षर अक्षर अक्षर नहीं मंडता,
न कोई काना मात।
हाले नहीं होठ कण्ठ जीब्या नहीं जेले,
न सांसा के साथ।।1।।
देखाऊ तो देख नहीं पूंगे,
न काेेेई नैणा मात।
केऊ तो केहण कथन में नाही,
न कोई भणत भणात।।2।।
छाने केऊ छाने कोयने,
न कोई प्रकट बात।
छाने चौड़ा के बीच मायने,
अणहद हो रही आवाज।।3।।
हे है जो तो न वो बाबजी,
न न कहे सो आप।
है न का बीच मायने,
नाथजी ने नाथ्या जो अनाद।।4।।
खण्ड ब्रह्माण्ड पण्ड की महमा,
आ तो ऊली बात।
चोथो पद तो भेद आगे,
पांचवों परख्या सुखपात।।5।।
पदमगरू परवाणी मलग्या,
हीरो दीदो हाथ।
लाडूरामजी सिवरण दीदी,
माला फरे है दन रात।।6।।
सोह सेन सेन में सेनी,
सेनी आगे आप।
गुजर गरीबो 'कनीरामजी' केवे,
भलो समझायाे मारा बाप।।7।।
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