गरूजी थांकी आरती ओ,
मुरती दया धर्म परवाण।
दिन भर करूं आरती।।टेर।।
साधू भाई काया को थाल मंजाय,
जिसमें पांच पच्चीसू बाती।
बना दिवला लागी लोय,
बना तेल बाती।।1।।
साधू भाई पीओ पीओ अमृत छाण,
स्नान करती नत बरती।
अष्ट कमल के माय,
सरसद पद रहती।।2।।
साधू भाई घण्टा बाजे अनहद नाद,
सुरत नुरत दोनों रहवे लपटी।
तरबीणी टकसाल,
तीनों धारा बहवे उलटी।।3।।
साधू भाई आठ पहर दिन रेण,
सिंवरण जड़ लागो दन राती।
छ: सौ इक्कीस,
लिव वा पोती।।4।।
साधू भाई उगम महल का खुल्या कपाट,
संत सिंवरण की लागी कूंची।
अगर कपूर संजोय,
पदमगरू करे आरती।।5।।
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