ऐसी मेरे सतगुरू जुगति बताई,
तांते शब्द साहिबी पाई।।टेर।।
उचरया शब्द भक्ति जद जागी,
हृदय हरख बंधाई।
हरख हूआ सुख दुख सब बिसरिया,
मिटगी दुरमत दाई।।1।।
खोजत शब्द कुबद भई काने,
सुद बुद शांंति आई।
धोखा मिट्या ध्यान धुन लागी,
जब मिट्या गुमान बड़ाई।।2।।
भेदया शब्द भरम पर टूटा,
तिमर मिट्या तन दांई।
आया अर्थ अलख ओलख्या,
दरस्या हरि दिल मांही।।3।।
शब्द सुख हुवा तन मन पर्चे,
सरि सगमरी आई।
अर्स पर्स सुखमण घर साहिब,
रूम रूम में राई।।4।।
आपा देख सकल में देख्या,
जड़ चेतन हरि राई।
लिखमा लाग जाक बांकू,
भर्मन भूला भाई।।5।।
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