ऐसी दीवि गुरू शब्‍द सेनाणी aisi divi guru shabd senani man bhani



ऐसी दीवि गुरू शब्‍द सेनाणी,
शब्‍द सेनाणी मेरे मन भाणी,उर अन्‍दर लपटाणी।


गुरू मिलिया गम दीदी कृपा कर,

हृदय में हर लिव लाणी।

हर लिवलाणी हरख उपजिया,

प्रसन्‍न हो गया प्राणी।।1।।


भेदिया शब्‍द भरम जद भागा,

अंग एकयत आणी।

विचार चस्‍मा उधर्या अंग मांही,

बोलत ब्रह्म पिछाणी।।2।।


खोजत शब्‍द नाम निरखता,

बंक बांट भेदाणी।

ज्‍यां संग गंगा जमना सरस्‍वती,

अनद्ध बीण सुनाणी।।3।।


सुरत शब्‍द मिल चढ़ सिखर बड़,

मन्दिर जोत जगाणी।

अधर दलीचे देव दरसिया,

सुरत चरण लिपटाणी।।4।।


गुरू गेवी निज नाम सुणाया,

निर्भय पद निसाणी।

निर्भय पद लिव लाय लिखमा,

इण विध अणभै वाणी।।5।।

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