मनवा चेतन रहो मेरा भाई,
सतगुरू मुझ पर महर करी,
जद सुर्त लहर में आई।।टेर।।
लागा प्रेम उलट गई अण में,
घट भीतर गुण गाई।
दुविदा दुरमत दूर करी,
जद राम भजन लिव आई।।1।।
मने मार करो मुसाला,
तन री तपत बुझाई।
पांचों पकड़ एकण घर लावो,
थारा किया करम कट जाई।।2।।
भीतर बेठो बहिर बोले,
ज्यारी खरी खबर लो भाई।
बोलत पुरूष री करो खोजना,
बाहर है या मांही।।3।।
अमर अखाड़ो सतगुरू जी री गादी,
तांमें शरण रहो मेरा भाई।
कह ''लिखमो'' सतगुरूजी शरणे,
मारे अमर झड़ी हाथ आई।।4।।
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