तत्व पायो है तन में,
बस्ती बसूं कि बन में।।टेर।।
तीर्थ जायने करे तपस्या,
उंधा झूले अगन में।
दुनिया देव लजाय पतिजे,
असल न पायो उन में।।1।।
मणकर भूला वेद बिहूणा,
शब्द न भेद्या मन में।
शब्द भेद्या जो सेजा पाया,
सन्मुख साहिब सुनमें।।2।।
सुखमण सगम अगम को खोजे,
दरस्या देव गगल में।
अमर गुरू रे अटल अखाड़े,
ब्रह्म विगत कह उनमें।।3।।
निर्गुण नाथ जात बिन जोगी,
रहे उनमनी धुन में।
गाण न खाण गुणा बिन गेवी,
रहता मरे न जग में।।4।।
आत्मा तंत सन्त जन सीजे,
सामिल रहे सकल में।
कह ''लिखमो'' जिनकी बलिहारी,
होय रहे मगन लगन में।।5।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें