कोई पीये राम रस प्यासा
राम रस खासा है जी
गगन मण्डल से अमरत बरसे
उनमुन के घर वासा ।टेर।
शीश उतार चरण में धर दे
करै ना तन की आशा
जो भी पीये वो जुग जुग जीये
कबहु ना होय निराशा ।1।
मोल करे तो थके दूर से
तोलत टूटे स्वांसा
इतना महंगा अमरत बिकता
जहर डूबा रही माशा ।2।
इण रस काज नृप भया योगी
छोडया भोग विलासा
अधर सिंहासन बैठे रहते
भस्म लगाई उदासा ।3।
गोरखनाथ भरथरी रसिया
और कबीर रैदासा
गुरु दादू परताप से
पी गये सुन्दर दासा ।4।
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