सीवरों सादा गणपत देवा,
भुल भरम में मत रीजो
निरभय पिया जी निरगुण धारा,
सरीगुण काज सरालिजो ॥1॥
गुणा के पति गुराजी ने शीवरू,
त्रीगुण त्राप मिटा दिजो।
गवरी के पुत्र गजानन्द शीवरू,
रीद्धी सीद्धी ने संग लिजो ॥2॥
तोड़ी भीत रीत सब जाणी,
दर्शन कर मारो मन रीज्यो।
चरण कमल में गंगा खलकी,
ले प्यालो अमरत पीज्यो ||3॥
जोग भोग संजोगु पारा,
विजोग वासना ने पर हरजो।
पांच विषय ने परले मेलो,
पांच बेडी पुजन करजो ॥4॥
नांव धर्म ने नरबे जाणो,
और देव ने मत पुजो।
पड़ो ला पंड पार नहीं जावो,
अतरो भरसी लिखर लिज्यों॥5॥
गोपीनाथ मिलीया गुरु पुरा,
धायो देव मा नही दुजो।
शंकर नाथ गुराजी के शरणे,
नाम को पकडीयो पन्जो ॥6॥
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