गुरू चरणां मन लागा मारा,
काम क्रोध सब त्यागा है।
अके मण्डल में आसण दीदा,
हरदम डंका लागा है।।टेर।।
पहला जाय पुरूष ने हेर्या,
सुकमण धोर लागा है।
वो हाथे नहीं आया,
नूरती सूं निरखण लागा है।।2।।
ऐसा पुरूष आद अनादि,
छाया धूप नहीं लागा है।
खण्ड ब्रहमण्ड रमता रावल,
तोड़ दिया जम धागा है।।3।।
पांच कोस और सात भोम का,
खट शरीरा ऊ आशा है।
अदर दलीचे आसन
वांका,
चित चरणां में
लागा है।।4।।
गोपी नाथ
मिलिया गुरू पूरा,
घर बताया माने
आगा है।
शंकर नाथ
गुराजी के शरणे ,
शीश दिया जब
लादा है।।5।।
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