राणी रत्नावती ने प्रभु प्यार पाया भगती से।
कोई कर देखो इतबार अपनी
शक्ति से ।।टेर।।
आमेर का महाराजा जी ,
माधो
सिंह है नाम।
उनकी पत्नी रत्नावती ने ,
पायो जग में नाम।
जिनका गणा भला व्यवहार, ।।1।।
राणी की इक दासी थी ,
करे
भलाई का काम।
श्याम सुन्दर की भगती में ,
रहती आठो याम।
भगती को रंग अपार।।2।।
दासी का प्रभु प्रेम देखके ,
राणी कियो विचार।
भजन बिना मुक्ति नहीं,
लिन्ही फकीरी धार।
पड़ी दासी के चरणा
जार।।3।।
दासी के उपदेश से ,
राणी
हुई निहाल।
महात्मा एक आ गये ,
दूर
देश से चाल।
राणी सन्ता के हो गई
लार।।4।।
सतसंग में जाणे लगी ,
राणी
भगती पाई।
माधोसिंह थे दिल्ली में ,
मंत्री खबर पहुंचाई।
राणी जावे मोड्यो की
लार।।5।।
माधोसिंह के बदन में ,
आयो
क्रोध अपार।
बेटा प्रेमसिंह भी आया ,
पिता के द्वार।
लीनी गले में माला
डार।।6।।
माधोसिंह कहे मोडी का यो ,
कई कीन्हो ढंग।
रत्नावती का समाचार सू ,
पहली हो रहा दंग।
ओरी कीनो क्रोध
अपार।।7।।
अमरसिंह चिट्ठी लिखी ,
सुणले माता बात।
मोडी का राजा कहे ,
मैं
थारी साथ।
अब सहाय करे करतार।।8।।
रातों रात दिल्ली से ,
हुए रवाना भाई।
माधोसिंह आ गये ,
गढ़ आमेर
के मांई।
अब लेवा राणी ने
मार।।9।।
पिंजरे में से नाहर छोड़ दो ,
राणी ने खा जाय।
रात अन्धेरी मायने ,
कौण
देखण ने आय।
फिर ऐसा ही किया
विचार।।10।।
नाहर गया जब महल में ,
तब
राणी कर रही पूजा।
नृसिंह स्वामी मान लिया ,
और न कोई सूजा।
करे पूजा चित धार।।11।।
सेवा पूजा ग्रहण कर ,
आया
महलां बाहर।
पिंजरा का सब नौकरां ने ,
पल में लीना मार।
बोल्यो माधोसिंह
घबरार।।12।।
राज पाट सब थारा राणी ,
मैं हूं थारी लार।
गलती मारी माफ करो ,
छोड्या अत्याचार।
कहे भैरूलाल विचार।।13।।
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