हुए नामदेव संत भारी करते हरि का ध्‍यान huye Naamdev sant bhari karte Hari ka dhyan bhajan lyrics

 

हुए नामदेव संत भारी करते हरि का ध्‍यान।।टेर।।

 

हैदराबाद में नरसी ब्राह्मणी ,

गांव एक था भाई।

दामा सेठ और गोडाई थे ,

दोनों धणी लुगाई।

छीपा जात है ज्‍यारी।।1।।

 

इन्‍हीं के घर नामदेव ने ,

जनम लिया है भाई।

1327 में काती सुद ,

एकम जब आई।

रविवार शुभ वारी।।2।।

 

नामदेव के पिता भगत थे ,

विठ्ठल पूजाधारी।

पंढरपुर के श्‍याम धणी पर ,

करते भरोसा भारी।

भगती नामदेव ने धारी।।3।।

 

किसी काम से दामा सेठ जी ,

बाहर गांव को जाय।

जाते जाते नामदेव ने ,

पूजा दीन्‍हीं भळाय।

बालक नामदेव सतधारी।।4।।

 

पूजा करके नामदेव ने ,

भोग लगाया भाई।

 दूध का कटोरा रख दिया ,

पीवो श्री रघुराई।

नहीं पीवे आप मुरारी।।5।।

 

मैं भी दूध नहीं पीऊंगा ,

सुणलो श्री रघुराई।

बालहठ से प्रकट होकर ,

दूध पी गये भाई।

करे बार बार मनुहारी।।6।।

 

गोविन्‍द सेठ की लड़की कहिये ,

नाम रजाई बाई।

छोटी उमर में नामदेव के ,

साथ माये परणाई।

रहवे भगती में धुनधारी।।7।।

 

नरसी ब्राह्मणी गांव छोड़कर ,

रहे पंढरपुर माही।

गौरा कुम्‍हार सांवता माली ,

संग में भगती कमाई।

करे भजन कीर्तन भारी।।8।।

 

संत ज्ञानेश्‍वर और नामदे ,

तीरथ करबा जावे।

बीकानेर के गांव कोलायत ,

फिरते फिरते आवे।

जंगल में प्‍यास लगी अति भारी।।9।।

 

सूखा कूड़ा पाणी नाहीं ,

नीर कठा से आवे।

सिद्धी बल से ज्ञानेश्‍वर जी ,

कूड़ा घुस जावे।

पीवे जल की जारी।।10।।

 

नामदेव के वास्‍ते भी ,

ले आये जल जारी।

विठ्ठल पिलाये तब ही पींऊ ,

सुणलो बात हमारी।

कूड़ा भरकर बहवे बाहरी।।11।।

 

बिसोबा खेचर गुरूजी कहिये ,

दीना ज्ञान बताय।

पंढरपुर पंजाब में ,

भगती भाव बताय।

ऐसे उमर लगा दी सारी।।12।।

 

एक दिना की बात बताऊ ,

आग लगी है भारी।

घर का घुदड़ा जल गया ,

जली झुपड़ी सारी।

पधार्या लाल रंग अवतारी।।13।।

 

छाबण लेबा चाल्‍या नामदे ,

लीन्‍ही कुवाड़ी हाथ।

आकड़ा के दे, खुद के दीनी

खून बहे एक साथ।

ऐसी दया बिचारी।।14।।

 

चौमासा के मांयने ,

भगत भींज रिया भाई।

राधा रूकमण संग में लाये ,

हरि ने छान छवाई।

हीरा पन्‍ना की शोभा भारी।।15।।

 

नामदेवजी सूना घर में ,

ठहर गये इकबार।

कहे गांव का सुणो  नामदे ,

रहवे रागस आर।

सब थर-थर धूजे भारी।।16।।

 

आधी रात राक्षस आया ,

लम्‍बा चौड़ा भारी।

लम्‍बकनाथ जी भला पधार्या ,

मानो पूजा मारी।

राक्षस की जूण सुधारी।।17।।

 

एक बार नामदेव जी ,

जाय जंगल के माई।

ठण्‍डी छाया देख  पेड़ की ,

रोटी वहां बणाई।

अब करे भोजन की त्‍यारी।।18।।

 

पेशाब करबा गया नामदे ,

कुत्‍ता आया एक।

रोट्या लेकर भाग गया ,

खड़ा-खड़ा रिया देख।

अब लीनी घी की पारी।।19।।

 

दोड्या नामदे सुणो सांवरा ,

कोरी कूं कर खावो।

घी लायो हूं चोपड़ लेवो ,

पीछे भोग लगावो।

तब चतरभुज रूपधारी।।20।।

 

80 वर्ष की उमर मांई ,

पहूंचे हरि के धाम।

संवत् 1407 में ,

आप लिया विश्राम।

भैरूलाल शरणे थारी।।21।।

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