देखो देखो दोस्त के साथ ,
कीदी बुरी गणी।
सुणलो सुणलो मारी बात ,
अबे
वांके कोण धणी।।टेर।।
मध्य देश का रहने वाला ,
गौतम जिसका नाम।
गांव गांवड़े जातो रहवे ,
भीख मांगना काम।
ब्राह्मण वांकी जात ।।1।।
अनपढ़ और गंवार था ,
न जाने
वेद पुराण।
भूखा ब्राह्मण चाल्यो गांवड़े ,
पेट भरे नाराण।
कुण जाने प्रभु की
करामात।।2।।
उसी गांव के मायने ,
एक डाकू
रहता भारी।
धन दौलत की कमी नहीं ,
और
बण्यो फरे शिकारी।
भील कोल वांकी जात।।3।।
उसी भील के घर जा करके ,
मांगे ब्राह्मण दान।
घर कपड़ा और अन्न देकर,
किया बहुत सम्मान।
दी दो बार महीना को हरतन
साथ।।4।।
सेवा में एक युवती दासी,
लो ढाबो माराज।
पति इसने छोड़ दिया ,
अब
करसी थाको काज।
अब रहे दासी के साथ।।5।।
शिकार करणो सीख गयो ,
बणग्यो
डाकू भारी।
दया दिल में है नहीं ,
होग्यो
मांसाहारी।
ऐसे बीते कितने ही
साल।।6।।
गौतम के ही गांव का ,
आया
ब्राह्मण एक।
जटा जूठ धारण किये ,
करके
भगवा भेख।
वो रहा गौतम की साथ।।7।।
भीलों के इस गांव में ,
रोटी
किसके खांऊ।
ब्राह्मण का घर होवे तो ,
प्रभु के भोग लगाऊ।
ऐसे कहे सभी से बात।।8।।
पता लगाकर पहुंच गये ,
गौतम
घर रहवास।
शिकार लेकर आ गया ,
गौतम
अपने साथ।
दोनों मिले जोड़कर
हाथ।।9।।
देख दशा गौतम की ,
ऐसी बोले
यूं ब्रह्मचारी।
व्याध कैसे बण गयो ,
खोटी
गणी विचारी।
अब छोड़ बुरों का
साथ।।10।।
गरीब हूं समझू नहीं ,
धन
कमाने आया।
कल यहां से चला जाऊंगा ,
सुणले
मारी भाया।
दोनों ही भूखा काटी
रात।।11।।
ब्रह्मचारी उठ चला,
होते ही
परभात।
गौतम भी घर छोड़कर ,
चला मन
समझात।
अब चाल्यो समन्द के
पास।।12।।
रस्ते में कुछ मिले बोपारी ,
होग्या उनके साथ।
गुफा माये डेरा दिया ,
जब हो
गई थी रात।
अब हाथी की आई जमात।।13।।
कुछ कुचले कुछ मर गये ,
कोई
गये है भाग।
साथ छूट गया बोपारी का ,
गौतम का दुर्भाग।
नहीं रहा किसी का
साथ।।14।।
चला समन्द के रास्ते ,
पहुंचा बन के माय।
वट वृक्ष को देखकर ,
तले
बैठग्या जाय।
वहां बैठा बैठा सुस्तात।।15।।
दिन अस्त जब हो गया ,
आया
संध्या काल।
ब्रह्म लोक से बगला आया ,
बेठा बरगद डाल।
वठे रहवे हमेशा रात।।16।।
कश्यपजी का पुत्र कहावे ,
राजधर्मा है नाम।
गौतम ऐसा सोच रहा ,
करदूं
काम तमाम।
खुद आ गया बगला पास।।17।।
बगला बोला घर आये हो ,
आप
मेरे मेहमान।
सुख रेहवो रात भर ,
सेवा करू
तमाम।
चले जाणा होते ही
परभात।।18।।
फूल और पाती तोड़कर ,
दीनी
सेज बणाय।
गंगाजी में जायकर ,
पकड़
माछल्या लाय।
फिर अग्नि भी लाया
साथ।।19।।
पका माछल्या खा गया ,
तृप्त
हुआ माराज।
हवा तब करने लगा ,
पंख
फैलाकर आज।
अब पूछे बगला बात।।20।।
आणा कैसे हुआ आपका ,
क्यू
है दु:खी शरीर।
धन लेने के वास्ते ,
मैं जाऊ समन्दर तीर।
इसमें देऊ आपको साथ।।12।।
मेरूव्रज एक नगर है ,
यहां
से बारा कोस।
विरूपाक्ष राक्षस रहे ,
जो
है मेरा दोस्त।
तुम जावो उनके पास।।22।।
मैं कह दूंगा दोस्त को ,
खूब देंगे धन माल।
मांगो जो मिल जायेगा ,
करदे
मालामाल।
इसमें शंका नहीं बात।।23।।
गौतम चाल्यो विरूपाक्ष के ,
पहुंच्यो नगरी द्वार।
सुण अगवाणी आ गये ,
सब ही
नगरी बाहर।
सब नौकर जोड़े हाथ।।24।।
पहुंच्या गौतम महल में ,
हो
रिया आदर भाव।
राक्षस राजा कह रहे ,
कई
आपको नाम।
पूरो देवो परिचय नाथ।।25।।
मध्यदेश का रहने वाला ,
भीलों के घर रहता हूं।
भीलण मारी घरवाली ,
सांची
सांची कहता हूं।
पण ब्राह्मण मारी
जात।।26।।
मेरे दोस्त ने भेजा है ,
करस्यूं इसका काम।
नाम मात्र का ब्राह्मण है ,
हृदय नहीं हरि नाम।
यो बणकर आयो अनाथ।।27।।
काती पूनम आज है ,
करस्या
धरम और ध्यान।
हजारों ब्राह्मण जीमसी ,
और
दूंगा बहुत ही दान।
साथे यह भी जीमसी
भात।।28।।
हीरा मोत्या से जड्या ,
सोना चांदी का थाल।
देशी घी का बणियोड़ा ,
पुरष
रिया है माल।
सब रुच रुच जीमें
भांत।।29।।
सोना चांदी हीरा पन्ना का ,
लगा दिया अब ढेर।
जितना चाहो ले जावो ,
मती
लगावो देर।
सब ले लो हाथो हाथ।।30।।
राक्षसगण आये गणे ,
इस उच्छव
के माय।
एक दिनां के वास्ते ,
ब्राह्मण नहीं सताय।
जावो जीम चूठ के भाग।।31।।
सोना की ले गांठड़ी ,
गौतम
पाछो आय।
बगला के घर आय के ,
डेरा
दिया लगाय।
वो भूखा थका बहु
भांत।।32।।
बगला आया पास में ,
खूब करी
मनुहार।
हवा कीदी पंख से ,
भोजन ल्याया
त्यार।
दोनों सोये साथ के
साथ।।33।।
गौतम मन में सोच रहा ,
गांठ
बंधी भरपूर।
रस्ते में क्या खाऊंगा,
गांव मेरा है दूर।
कर लेऊ बगला की घात।।34।।
बकराज ने पास में ही ,
लगा
रखी थी धूणी।
सर्दी सब जाती रहे ,
निन्द्रा
आवे दूणी।
अब सुणो बुरे हालात।।35।।
जलती लकड़ी लाया गौतम ,
बुरी
बिचारी भाई।
सूता दोस्त ने जला दिया ,
जरा दया नहीं आई।
और मन में रहा मुस्कात।।36।।
पाड़ दिया पग पांखड़ा ,
धड़
ले लीनी साथ।
रस्ते में जहां भूख लगे ,
लेकर खाता जात।
धन माल की गठड़ी माथ।।37।।
हमेश ब्रह्मा की पूजा को ,
बगला सुबह जाता था।
राक्षस राज विरूपाक्ष से ,
मिलता हुआ ही आता था।
दो दिन से नहीं हुई
बात।।38।।
राक्षस राज कहे पुत्र से,
पता लगाकर आवो।
गौतम पर शंका मुझे ,
जल्दी
पकड़ के लावो।
ले आवो हाथो हाथ।।39।।
विरूपाक्ष का पुत्र चला ,
वट
वृक्ष के पास।
पग पांखड़ा देख कर ,
मन में
हुआ उदास।
जा पकड्यो गौतम को
हाथ।।40।।
गौतम को लेकर के ,
राक्षस
मेरूव्रज में आया।
विरूपाक्ष को राजधर्मा का ,
मृत शरीर दिखाया।
पापी यह क्या किया
हालात।।41।।
देख दशा यूं दोस्त की ,
सब
फूट फूट के रोय।
पुरी नगरी दु:खी हुई है ,
धीरज धरे न कोय।
पूरे गांव में फैली
बात।।42।।
इस पापी को मार के ,
सब
राक्षस खा जावो।
हम पापी खाते नहीं ,
डाकुओं
को सम्मलावो।
सभी यही समझात।।43।।
टुकड़े टुकड़े कर गौतम के ,
डाकुओं को दे दीना।
किसी ने खाया नहीं ,
मना सभी
ने कीना।
कृतघ्न खाया दु:ख
पात।।44।।
विरूपाक्ष ने बकराज की ,
चीता एक बणाई।
उसी समय आकाश से ,
सुरे गाय
वहां आई।
वा अमरत फेन जरात।।45।।
अमृत झाग के पड़ते ही,
जी
उठा बकराज।
इन्दर भी आकर कहे ,
बड़े
भाग महाराज।
अब कहूं रहस्य की
बात।।46।।
ब्रह्माजी की सभा में ,
नहीं
गया बकराज।
श्राप दे दिया ब्रह्मा ने,
होकर के नाराज।
तेरा होगा रे अपघात।।47।।
बगला कहवे इन्द्र से ,
सुणो
मेरी अरदास।
गौतम को जिन्दा कर दो ,
यह
आया मेरे पास।
प्रभु मानो मारी बात।।48।।
अमृत छिड़क कर इन्द्र ने ,
कृपा कीनी नाथ।
गौतम को जिन्दा किया ,
बक
मिला भर बाथ।
भेजा धन देकर के साथ।।49।।
गौतम धन ले आ गया ,
भीलों के
ही गांव।
औरत फिर वो की वोही ,
राखे
सभी दुराव।
ब्राह्मण रहवे भीलण के
साथ।।50।।
कई पुत्र पैदा किये ,
जो कुल
के दाग लगाय।
महा पुरूष यूं कह गये ,
पापी
नरक में जाय।
भैरू लाल जोड़े हाथ।।51।।
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