जीवत ही मर्या समान,
जग में चवदा जणा॥टेर॥
पहला कहिये वाम मार्गी,
दूजा कामी जाण॥1॥
तीजा कहिये कंजूस मूंजी,
चौथा अत्यन्त मूढ़॥2॥
पांचवा कहिये महा दरिदरी,
छटा होवे बदनाम॥3॥
सातवा कहिये बहुत ही बूढ़ा,
आठवा रोगी जाण॥4॥
नवमा कहिये नत का क्रोधी,
दसवा विमुख भगवान॥5॥
ग्यारवा कहिये सन्त
विरोधी,
बाहरवा खुद ही खाय॥6॥
तेहरवा करे है निन्दया
पराई,
चवदवा पापी जाण॥7॥
भैरूलाल की सुणज्यो विणती,
रामायण की शाखा जाण॥8॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें