दोहा: भाटा भैंसा चीचड़ा मीन मृग गज काग।
खर घघू बुग चालणी मूस तराजू नाग।।
याने कभी न होवे ज्ञान,
चाहे कितना ही करो बयान।।टेर।।
भाटा पाणी में नहीं भीगे,
भैंसा खूब डबोवे सींगे।
चीचड़ पय करे नहीं पान।।1।।
खुद पीवे नहीं पाणी मीना,
मृगा नाभी सुगंध नहीं लीना।
कुंजर खुद ही करे स्नान।।2।।
कागा नीर ताल नहीं पीवे,
खर को मिश्री दिया न जीवे।
उल्लू ने सूझे नाही भान।।3।।
चालणी कण तज राखे भूसा,
सदा ही खाली रहवे मूसा।
बगुला करे मीन को ध्यान।।4।।
तराजू रहे रीती की रीती,
करता नाग खूब बदनीती।
ओम को इनसे बचा भगवान।।5।।
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