दोहा: सकार प्राण के आवता, हकार
जावती बार।
हंस मंत्र हरदम जपे, जीव जीभ बिन सार।।
मनवा सोहं पर धुन धर रे।
सोहं आप सदा निर्वाणी,
सांची निश्चय कर रे।।टेर।।
ब्रह्मा विष्णु जपे महादेवा,
जिससे रहत खबर रे।
दस अवतार सोहं को रटिया,
जब पाया वह घर रे।।1।।
सभी संतो ने सोहं गाया,
कर कर उनकी खबर रे।
उनको लेय पवन बिच पोया,
वे ही सांचा नर रे।।2।।
और नाम उन्ही की शाखा,
सोहं जाण जबर रे।
उनके माय आप मिल जावो,
जैसे बून्द सरवर रे।।3।।
सोहं बिना सार नहीं पावे,
आवागमन न टरे रे।
सोहं अजर अमर अविनाशी,
इनको कर ले थिर रे।।4।।
सोहं सतगरू सोहं चेला,
यही धार ले उर रे।
ओमप्रकाश कहे सोहं समझ के,
निडर होय विचरे रे।।5।।
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