दोहा: बाना धारे संत का, चले दुष्ट की चाल।
धोखा देवे जगत को, साहिब खींचे खाल।।
साधू भाई क्यो लजावे बाना।
बाना तणो भेद नहीं जाणे,
खाली लोग हंसाना।।टेर।।
साधू कहावे शर्म नहीं आवे,
सत्य कर्म नहीं जाना।
अपनी आप बड़ाई करता,
दूजा को नहीं माना।।1।।
भीड़ पड़े नेड़ा नहीं आवे,
देय दूर से काना।
झूठी बात करे नर भोंदू,
निश्चय नाही निशाना।।2।।
नींच कर्म की नींव लगाकर,
ऊंचा पद की ताना।
सांचा को नर झूठा बतावे,
सही भेद नहीं पाना।।3।।
चेला मूंडे लोभ के खातिर,
अपना काम बनाना।
ओमप्रकाश शर्म नहीं आवे,
क्यों नहीं रहवे छाना।।4।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें