ब्रह्म ज्ञानियां रो आयो रे धड़ीन्दो,
भेद वादियां री छाती धड़के।
मारा भाया नुगरा की छाती धड़के।
डरपो मती वा,
वा डरपो मती,
चेतन घर में ले जास्या डरपो मती।।टेर।।
बालमिकी वशिष्ठ व्यास सुखदेवजी।
ब्रह्म ज्ञान की तो बांधी सड़के।।1।।
विवेक वैराग्य षट सम्पति मुमुक्षता।
ज्ञान का साधन बताया भड़के।।2।।
श्रवण मनन निदिध्यासन तीनों।
तत् त्वं शोधन अन्तरंग अड़के।।3।।
सत चित आनन्द ब्रह्म अखण्डित।
नाम अरू रूप मिटाया हड़के।।4।।
अनन्तो ही संत भया है ब्रह्मज्ञानी।
भेदवादियो रे माथे सारा कड़के।।5।।
वेद अरू ग्रंथ समृतिया कहे सारी।
गीता अरू रामायण देखो पढ़के।।6।।
ओमप्रकाश गुरू मिल्या ब्रह्मवेत्ता।
माणक कहे द्वेत तागो तोड़ो तड़के।।7।।
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