मन रे सतगरू कर मेरा प्‍यारा हो जावो भव पारा man re satguru kar mera pyara ho javo bhav para

 

मन रे सतगरू कर मेरा प्‍यारा।

कर परतीत प्रेम रस पीवो,

हो जावो भव पारा।।टेर।।

 

बालपणो बेहाल गमायो,

जोबन कामण हारा।

बूढ़ापो तन रोग छाग्‍यो,

भोजन लागे खारा।।1।।

 

सतगरू ध्‍याय परम पद पाले,

सहज मुकत सुख लेरा।

भरम करम व्‍यापे नहीं उसके,

ऐसा गुरू दातारा।।2।।

 

गरू की महिमा कही न जावे,

अपरम पार अपारा।

शिव सनकादिक गावे गुरू ने,

चारू वेद उचारा।।3।।

 

पूसाराम गुरू सामर्थ स्‍वामी,

खुलिया भाग हमारा।

रामधन हंस रामधुन लागी,

धोखा नहीं लगारा।।4।।

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