मन रे गरू सिवाय नहीं दाता त्रिलोकी में देख निगह कर man re guru sivay nahi data triloki me dekh nigah kar

 मन रे गरू सिवाय नहीं दाता।

त्रिलोकी में देख निगह कर,

अगम निगम यू गाता।।टेर।।

 

असंग जुगा रो सूतो पक्षी,

सतगरू आय जगाता।

धन धन भाग हमारा कहिये,

कहे ज्ञान की बाता।।1।।

 

गुरू बिन फन्‍द कभी नहीं छूटे,

जाय गुडिन्‍दा खाता।

बारम्‍बार जनम अरू मरना,

बहुत कष्‍ट दु:ख पाता।।2।।

 

सतगरू मिल्‍या भरम सब भागे,

ले उबार भव बहता।

जम को डाण फेर नहीं लागे,

सभी उठावे खाता।।3।।

 

पूसाराम मिल्‍या बड़भागी,

परा परी सू नाता।

रामधन हंस पलक नहीं बिसरे,

आठ पहर गुण गाता।।4।।

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