गुरू बिन पड़े खाडा में ऊंडो।
कहवे सन्त मान ले मूरख,
कालो करसी मूंडो।।टेर।।
जग सागर को थाग न आवे,
पाव टिके नहीं पैण्डो।
गरू बिन पार होय नहीं गाफिल,
नांव मिले नहीं डूडो।।1।।
सतसंग छोड़ कुसंग में लागो,
कांई भूलग्यो भूण्डो।
गुरू को नाम भूली ना लेवे,
जम कूटसी मूण्डो।।2।।
तज मर्याद वेद की भोन्दू,
कहो न माने गुण्डो।
पल पल में शट पाप पसारो,
हाथ लिया
छूरी खाण्डो।।3।।
कर्मी करम कमावे खोटा,
उल्टी जाणे लूण्डो।
रामधन हंस रामधुन लागी,
निज निज गुरू ने ढूंढो।।4।।
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