थारी मूंगी करू मनवार,
कलु का पावणा रे।
संगेती पावणा रे,
मारे घर रेण रहतो जाय।।टेर।।
जो जुंवारी गणा हिया दाता,
होला पोटा के माय।
खांडण वाली हीन्दे पालणे,
बीज खेत के माय।।1।।
सौ सुवाड़ी सौ बाकड़ी,
सौ अण दुही जाय।
गुहली देबा ने गोबर कोयने,
दूध मोल को आय।।2।।
थाने आता जाणती गुरूसा,
देती पलंग ढुलाय।
ताता भोजन करती त्यारी,
पंखा पांव ढुलाय।।3।।
कहे कबीर सुणो भाई साधू,
सुणलो ध्यान लगाय।
अणी भजन की करे खोजना,
अमरापुर में जाय।।4।।
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