भगती पाकी रे गुरांसा की बाणी हरदे राखी रे bhakti paki re gurasa ki bani harde rakhi re

 

भगती पाकी रे,

गुरांसा की बाणी हरदे राखी रे।।टेर।।

 

धार गरीबी गरभ न राख्‍यो,

छोड़ जगत की ना‍की रे।

सब का गुण चुण करके,

ओगण दीना ढाकी रे।।1।।

 

नारी जात मात कर जाणी,

कुदृष्टि नहीं ताकी रे।

निशदिन कियो अभ्‍यास,

इन्द्रिया आखिर थाकी रे।।2।।

आशा तृष्‍णा मेटी मन की,

मार्यो लोभ बड़ो डाकी रे।

संत जणा की संगत करता,

रही नहीं बांकी रे।।3।।

 

त्रिलोकी थने दर्शण दीदा,

रूप बणकर खाकी रे।

गोपेश्‍वर की मुक्ति कीदी,

सांची भाकी रे।।4।।

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