तिरगुण के ऊपर बजने लगा है तन्दूर ।।टेर।।
धर के तन्दूर मैने ऐसा बजाया,
गांव नांव तो सभी थकाया।
उस मालिक का पता जाेे पाया,
बसेे अगम से दूर ।।1।।
सार अजण्टी वहां बैठाई,
चवदा लोक में फरे दुहाई।
दस अवतार देह छिटकाई,
खण्डन भये जरूर ।।2।।
चवदह लाेक अजण्टी जाना,
ब्रह्माण्ड का हेेर ठिकाणा।
भजन भाव तेरा थकिया जाणा,
झूठा करो फतूर ।।3।।
बाणी तो पाणी भर रही है,
धरम ध्यान तेरा पूंगे नहीं हैै।
दास कबीर ने सेण लिखाई है,
चारो वेद मंजूर ।।5।।
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