लखो रे भाया साेेेहं नाम हरि,
उठत बैठत सोवत जागत,
निज मन धारो धीर ।।टेर।।
चरण कमल की महिमा भारी,
सोचो समझो नर और नारी।
वृथा उमर जावे सारी,
कई करो थे धीर ।।1।।
बिन फेर्या वा फर रही माला,
सोचेे समझे गरु का बाला।
कट जावे जीव जमा का जाला,
समरथ मल्या गरु पीर ।।2।।
ओम सोहं की झालर बाजे,
अनहद नाद सर्व घट गाजे।
बिन सिमरण इक सूणीयो सागे,
गुरुगम शबद गमीर ।।3।।
उतराखण्ड में हरिजन जागे,
उर्ध हुंकारो हरदम लागे।
सुरता चढ़ी सिखर के छाजे,
सुणता फकड़ फकीर ।।4।।
दोलाराम जी सतगुरु पाया,
शम्भूनाथ जी कह समझाया।
''छोगादास'' चरणा चित लाया,
हियो सागर में सीर ।।5।।
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