मारग रे माही लूटे है पांच जणी marag re mahi loote hai panch jani bhajan



मारग रे माही लूटे है पांच जणी,

काची काया थारो कौण धणी।।टेर।।


आशा तृष्‍णा नंदिया भारी,

बह गये सिद्ध बड़े ब्रह्मचारी।

जो बच गये सो शरण तुम्‍हारी,

जैसे चमके सेल अणी ।।1।।


पांच पचीस मिल रोके घाटा,

साधू चढ़ गये उल्‍टी बाटा।

रोक लिया सब ओघट घाटा,

पार उतारो आप धणी ।।2।।


बन में लुट गये मुनि जन नागा,

डस गई ममता उल्‍टी टांगा।

जांके कान गरू नहीं लागा,

श्रंगी ऋषि में आण बणी ।।3।।


शंकर लुट गये नेजाधारी,

रेयत उनकी कौन बिचारी।

भूल रही करमन की मारी,

त्रिगुण झुक गई तीन अणी ।।4।।


इन्‍द्र बगाड़ी गौतम नारी,

कुब्‍जा ले गये कृष्‍ण मुरारी।

राधा रुकमण बिलखत हारी,

रामचंद्र में आण बणी ।।5।।


साहिब कबीर गुरु दीना हेला,

'धर्मदास'  सुणिये निज चेला।

लम्‍बा मारग पंथ दंहेला,

सिमरो सिरजनहार धणी ।।6।।





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