सतगरू मुझ में ,मैं सतगरू में,
जल पर तरंग थयो ये।
सैयां माने सतगरू तार लियो ये ।।टेर।।
जागा जागा भाग पुरबला ही जाग्या,
समरथ हाथ धर्यो ये ।
मोटा मोटा हीरा धण्या बिना सूना,
जवरी लूट लियो ये ।।1।।
भूल भूल में कई दिन खोया,
अब तो जाग गयो ये।
जागी मारी नीन्द सपन से चेत्यो,
गुरूगम सेल बयाे ये ।।2।।
अकल अरूपी ब्रह्म अखण्डा,
खोजत आणन्द भयो ये।
कटिया रे करम भरम सब भागा,
भव सिन्धूू पार कियो ये ।।3।।
धनसुख राम मल्या गरू पूरा,
केवल ज्ञान दियो ये।
''ईश्वरदास'' खेल ख्याली का,
बहुरंग निरख लियो ये ।।4।।
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