गरूदेव दयालू मेरा मोह का बंधन तोड़ दिया gurudev dayalu mera moh ka bandhan tod diya



दया करी गरूदेव दयालू,
मेरा मोह का बंधन तोड़ दिया ।।टेर।।

ढूढ रहा दिन रात सदा,
जग के सब काज बिहारन में ।
सपने सम सृष्टि दिखाय मुझे,
मेरे चंचल चित को मोड़ दिया ।।1।।

कोई शेष महेश गणेश रटे,
कोई पूजत पीर पेगम्‍बर को ।
सब पंथ और ग्रंथ छूड़ा करके,
इक ईश्‍वर में मन जोड़ दिया ।।2।।

काेई ढुंढत है मथुरा नगरी,
कोई जाय बनारस बास करे।
जब व्‍यापक रूप पहचान लिया,
सब भ्रम का भाण्‍डा फोड़ दिया ।।3।।

सतगरू के क्‍या भेंट करू,
कोई चीज नहीं इस लोकन में।
ब्रह्मानन्‍द समान न और कोई,
धन माणिक लाख करोड़ दिया ।।4।।



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