रावण थाने समझावे राणी,
सीख नहीं मानी अभिमानी।।टेर।।
पियाजी थे बुरा काम कीना,
डाव पर तिरीया पर दीना।
राज कर आच्छो जस लीनो,
धृक है थारो अब जीणो ।।
दोहा: वो कर्ता संसार में कला हंस अवतार।
उनसे तोड्या नहीं सरेगा रे गियो मूढ़ गंवार।।
समझे ना मूरख अज्ञानी ।।1।।
रीस कर बाेेेेेल्यो दुख दाई,
अकल नहीं तिरिया के माही।
बसत ये बन में दो भाई,
पकड़ मंगवा देऊ अब यांंही।
दोहा: मरा न मारा राम नेया मरदा की रीत।
मेरे आगे रामचंद्र वो किस जावे जीत ।।
राड़ एक रघुवर से ठानी ।।2।।
सीख एक मानो पिया मेरी,
अरज करुं चरणां में तेरी ।
मिलो जब ले सीता नारी,
हार जब हो जावे थारी।
दोहा: लेय जानकी मात को पड़ो राम के पांय।
जनम जनम के सब ही बंधन कट जावे छिन मांय।।
ऐसो है दाता रघुराई ।।3।।
सीख जब मानू तोरी,
निकट में डूब जाय मोरी।
मिलू जब ले सीता नारी,
हार जब हो जावे मारी ।
दोहा: मेघनाद सा पुत्र हमारे, कुम्भकरण बल भाई।
लंका जैसा कोट हमारे, सात समन्द नौ खाई।।
असंख्या भर रिया जठे पाणी ।।4।।
काल जब आय गयो थांको,
अबे नहीं बचबा को आंको।
होयगा मिलने का सांसा,
अबे नहीं भगने का नाका।
दोहा: लक्ष्मण जैैैसा वीर उनके, जती मर्द बलवान।
अंगद जैसा पायक उनके,अगवानी हनुमान।।
और की गिणती नहीं आणी ।।5।।
चढ़े तो इक दल बादल भारा,
राम और लक्ष्मण की लारा।
उतरिया सागर तट सारा,
रीछ और बन्दर भी लारा।
दोहा: ररो ममो दोय अक्षर लिख के,समन्दर बाधी पाज।
मन्दोदरी रावण ने कहती अब तो चेत गंवार।।
फौज रघुवर की चढ़ आई ।।6।।
पाप पर तिरीया को भारी,
सुणो जी तुम नर और नारी।
रावण हर लायो पर नारी,
जिनकी केसी भई भारी।
दोहा: रावण मार्यो रामजी,दियो विभिषण राज।
''तुलसीदास'' आशा रघुवर की,रामचंद्र प्रतिपाल।।
भगत की भगती पहचाणी ।।7।।
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