हरि तो मेरा ऐसा उपकारी,
रखे दो बालक मंजारी ।।टेर।।
आवड़ो खडके कुम्हारी,
बालक जब धरिया मंजारी।
अगन जब चारू दिशा लागी,
लपटा लाग रही भारी ।
दोहा: सुद बुद आई कुम्हार ने, लई सुमरणा हाथ।
ये बालक अब कैसे बचेंगे,सहाय करो रघुनाथ।।
परकमा दे रिया रे नर नारी ।।1।।
भगत की अर्जी सुण लीज्यो,
विलम्ब प्रभु देरी मत कीज्यो।
तुरत मोय जीव दया दीज्यो,
खबर मारी जल्दी सुण लीज्यो ।
दोहा: प्रहलाद खड़ा कुम्हार के,देख राम को सांच।
तुम रटना दिन रात प्रभु को, अगन लगे नहीं आंच।।
भक्त है ऐसा शुभकारी ।।2।।
सभा में राजा चढ़ आया,
कंंवर को जल्दी बुलवाया।
हाथ में पोथी दिलवाया,
कंवर कूं पढ़ने बैठाया।
दोहा: सभी नगर का बालकिया गया कंवर के लेर।
बेग पढ़ावो गरु हमारा, तुझे करूं प्रणाम ।।
विद्या में कर दो हुसियारी ।।3।।
राजा मन सुखी होय चाला,
कंवर जब बैठा पटशाला।
गुरा ने दीना दुशाला,
कड़ा और मातियन माला ।
दोहा: प्रहलाद गये पाठशाला में, ले हिरदे हरिनाम।
बेग पढ़ाओ गरू हमारा,लुल लुल करूं प्रणाम।।
सिमरण की हो रही तैयारी ।।4।।
पढ़ो रे मन राम नाम गोपाल,
और सब झूठा है जंजाल।
गुरा के उठी बदन में जाल,
काल थारे आयो है रे प्रहलाद।
दोहा: कहे हिरणाकुश सुणो गरु जी,बालक दियो है बिगाड़।
मूं मांडू बाचे नही रे यो झगड़त मूढ़ गवार ।।
समझे ना मूरख अज्ञानी।।5।।
दुष्ट ने लाल नेत्र कीना,
कंवर को जकड़ बांध लीना।
जाय पर्वत से डार दीना,
धरत ने अधर उठा लीना।
दोहा: जब गिरीवर नीचो भयो, जमी बराबर होय।
घुड़तो देख्यो भगत ने, लियो गोद के मांय।।
भगत की त्रास गई भारी ।।6।।
हाेलका दगा कपट की खान,
अग्नी करती रोज स्नान।
होली ने शंकर को वरदान,
तेरे घट नहीं हे रे नाराण।
दोहा: उठाय के प्रहलाद ने लियो गोद के मांय।
शस्त्र सारा तैयार कराया अग्नी दीनी लगाय।।
भगत है ऐसा शुभकारी ।।7।।
कमर कस दुष्ट भयो त्यारी,
हाथ में खांडो चौधारी।
कंवर अब होजा हुशियारा,
शीश तेरा काट करूं न्यारा।
दोहा: पिता कहे प्रहलाद ने सुणो पुत्र मेरी बात।
के तो थारो राम बता देे, नीतर करस्यांं घात ।।
चाम थारी उड़ा देऊ न्यारी ।।8।। (तूड़ा दू चामडिया तेरी)
तेरे और मेरे घट नाराण,
खम्भ और खड़ग में भगवान।
पिता तू बड़ा दुष्ट बेईमान,
नहीं थारे हिरदा में हरिनाम।
दोहा: मार मार काट दे,गाड़ दे नहीं छोडू हरिनाम।
भावे शीश अतार ले, चाहे डाल अगन के मांय ।।
मोय तो उबारे गिरधारी ।।9।।
खम्भ जब ताता करवाया,
तेल और घी भी छिड़कवाया।
दुष्ट तो बाथा भरवावे,
भगत तो हरि का गुण गावे।
दोहा: जब खम्भ ताता भया, खर खर पड़े अंगार।
आप धणी रघुनाथ बिना,कौन करे मारी सहाय।।
खम्भ जब पकड्यो ललकारी ।।10।।
नहीं तो है रैण दिन चन्दा,
भगत का काट्या है फन्दा।
आय जब मिलिया गोविन्दा,
उपजे सभी ही आनन्दा ।
दोहा: हिरणाकुश ने मारियो, भगत लियो उबार।
''सुन्दरदास'' मंगल पद गावे,सतगुरु के दरबार।।
भगत से तर गये नर नारी ।।11।।
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