पवनसुत अब तक नहीं आया,
न मालूूम किसने भरमाया ।।टेर।।
हम को तो बनवास दियाजी,
माता की मति भंग।
तुम तो आये प्रेम की खातर,
किया हमारा संग ।
पिताजी ने बहुत समझाया ।।1।।
देख दशा श्री लखन लाल की,
बोले श्री रघुबीर।
उठो भाई मुख से बोलो,
कहां लग्यो थारे तीर।
नीर नैणा में भर आया ।।2।।
तुम तो सूते सुखभर निद्रा,
तन की सुद बिसराय।
मेघनाद रावण का लड़का,
जिनसे करी लड़ाई।
राक्षसों का बहुत ही दल छाया ।।3।।
अयोध्यापुरी में जाय के रे,
कैसे मुख दिखलाऊ।
लोग कहे तिरीया के खातर,
भाई को दिया मराय।
दास तुलसी ने जस गाया ।।4।।
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