पांडव आम रस कथा लिरिक्‍स Pandav aam ras katha lyrics



:: पांडवाे का आम रस  ::


भजो नाथ मोह माया निवारो। प्राण तजो पंडवा सत् मती हारो।।

सिवरू देव शनेश्‍चर राजाराजी व्‍हे जिण घर बाजे बाजा।।

नुगरा पाप्‍या घाल्‍या घेरापाप झड़े पेरा भोरा है जी।।


गवरी का नन्‍द गणेश ने मनाऊसिवरू सारद माय।

रणत भंवर से आप पधारो,भूल्‍या ने राम बताय।।

 

दुर्वासा उवाच

 

कहे दुर्वासा सुणो श्री ठाकुर सुणलो अर्ज हमारी।

मृत्‍यु लोक में घूमकर आया चेला कीदा बड़ा भारी।।

 

पांच पुत्र माता कुन्‍ता का मुंड्या, एक सौ न अष्‍ठ गन्‍धारी।

जेठल भीमा नुकला जोशी, अर्जुण बाणाधारी।।

 

असंग जुगां का सती और सूरमा है बड़ा बलकारी।

राजपाट करे हस्‍थनापुर केरू पांडू अधिकारी।।

केरवा में दरजोजन दीखे है बड़ो बलधारी।

ऐसी बात कहे दुर्वासा सुणलो कृष्‍ण मुरारी।।1।।

 

श्री कृष्‍ण उवाच

 

कहे श्री ठाकुर सुणो दुर्वासा सुणलो बात हमारी।

मृत्‍यु लोक में घूमकर आया चेला कीदा बड़ा भारी।।

 

पांच पुत्र माता कुन्‍ता का मूंड्या एक सौ अष्‍ठ गंधारी।

कहां कहो थे सती सूरमा मैं केवा अहंकारी।।

 

असंग जुगां का राक्षस डाणा, मारेला काढ़ कटारी।

सांचा झूठा की लावो परीक्षा यू कहे कृष्‍ण मुरारी।।2।।

 

दुर्वासा उवाच

 

पंडवां की पोळ आया दुर्वासा आण आसका सारी।

कहे दुर्वासा सुणो मारा चेला सुणलो बात हमारी।।

 

इन्‍दर अखाड़े में गया देख्‍या अचम्‍भो भारी।

सुई का नाका में हस्‍ती समाया ऊपर अम्‍बा बाड़ी।।

 

कुण का महल कुण का माल्‍या कुण की धन माया सारी।

कुण का पूत कुण का नाती कुण का बाजो आज्ञाकारी।।3।।

 

पांडव उवाच

 

सांचा मारा गरूजी जुगाई जुग सांचा, सांची बात बिचारी।

सुई का नाका में हाथी कई मावे, पृथ्‍वी समागी सारी।।

 

आपका महल आपका माल्‍या, आपकी धन माया सारी।

आप का पूत धरम का नाती, गरूजी का बाजा आज्ञाकारी।।4।।

 

दुर्वासा उवाच

 

केरवां की पोळ आया दुर्वासा आण आसका सारी।

कहे दुर्वासा सुणो मारा चेला सुणलो बात हमारी।।

 

इन्‍दर अखाड़े में गया देख्‍या अचम्‍भो भारी।

सुई का नाका में हस्‍ती समाया ऊपर अम्‍बा बाड़ी।।

 

कुण का महल कुण का माल्‍या कुण की धन माया सारी।

कुण का पूत कुण का नाती कुण का बाजो आज्ञाकारी।।5।।

 

केरव उवाच

 

झूठा मारा गरूजी जुगाई जुग झूठा झूठी बात बिचारी।

सुई का नाका मांये धागो नहीं मावे हस्‍ती की कहिये बिचारी।।

 

सुणकर रीस कीदी दुरजोजन महलां में लागी खारी।

अमूज्‍या कंवल महा दु:ख पावे सभा हंसगी सारी।।

 

ऐसी बात माने मती कहो काढा शहर के बारी।

माका महल माका माल्‍या माकी धन माया सारी।।

 

अंध का पूत गंधारी का फरजन।

मन मुखी बाजा आज्ञाकारी ।।6।।

 

केरवां की जुड़ रही कबद कहवेगी गरूजीऊ बातां करे ऐड़ी बेड़ी।।

 

दरजोजन दुर्वासा दुवा जालम मन में उपाया जुवा।

आम्‍बा का बीज भस्‍म कर जाल्‍या,रेण दन बच्‍चे अम्‍बक उकाल्‍या।।

 

बाल जाल के कण ने संजोयो।सवा सात मण तेल में सीजोयो।।

बाळ कष्‍ट कियो कण कालो।लेवो गरूजी थांका रिखा आगे रालो।।

 

सवा पहर में आम्‍बो उगाज्‍यो।सवा पहर में साल पकाज्‍यो।।

सवा पहर में धेनू दूवाज्‍यो।अतरी करे उठे भोजन पाज्‍यो।।

 

और भोजन अंग नहीं लगाज्‍यो।

नहीं तो सराप देन पाछा आज्‍यो।।7।।

 

दुर्वासा उवाच

 

कुल थारो बगड्यो गंधारी कुन्‍ता। विरोध पड़ जाए दोनूं का पूता।।

केरू माने नही हिया बदीता। पांडवां ने बरस बारा बीत्‍या।।

 

पांडू सती सत् के सहारे। प्राण तज देय पण सत् नहीं हारे।।

सत् वां घर की जावेला नाई। वां की पूछ त्रिलोकी ताई।।

 

मैं कीदा एक सौ न तेरा चेला। समज्‍या पांच अठोतर गेहला।।

सबला भीमा नुकला अंग ओछे। अदक उरजण सहदेव सांचे।।

 

जालम बड़ा जेठल जोड़े। सहवे त्राप तपस्‍याऊ नहीं तोड़े।।

थे जाणो केरवा थाको दावो। भोळा जोगी ने मती सतावो।।

 

वांकी मासी थाकी माता।

खोटा लेख लिख्‍या विधाता।।8।।

 

चलकर केरू पंडवां पर परस्‍या। किस निमत का मांगो परच्‍या।।

एक गई अठोतर पाई। दूजी गई पांच फरमाई।।

 

ऐकाएक अनेका अन्‍तर। जाकर पूछो बड़ा बेदन्‍तर।।

राजा पंड के पुत्र हेता। राज पदवी में हस्‍थनापुर लेता।।

 

वे हलवा में मुख भारी। गणां की जीत थोड़ा जावे हारी।।

धूणी पाणी जाय तापो। सत् हारे तो सही सरापो।।

 

कड़वे मीठे काम न कांई। भोजन लिख्‍यो इन पुडक्‍या मांई।।

आमे निपजे तो भोजन पाज्‍यो। बेरिया ने बोल बसान पाछा आज्‍यो।।9।।

 

रीस रोस का काम नहीं दुर्वासा। गळे पडग्‍या केरवां का पासा।।

बिदा हुआ गुरू पूंग्‍या बनवासा। दरसण दौड़ कीदा हर का दासा।।

 

भीमजी अरज हाथ कर जोड़े। दास हरिजी के मुख सामो दोड़े।।

ओल्‍यू दोल्‍यू आगे पीछे। लूम झूम गुरां के पांवा लागे।।

 

चरण खोळ चरणामृत लीदा। कृपा करी गरू दर्शन दीदा।।

गंगाजल नीर संजोवा संपाडा। भक्ति करां भर दीज्‍यो भाड़ा।।

 

सेवा सपूरण चढ़ावा सामी। उठावा बन्‍दगी पंडवा ने देवा स्‍वामी।।

मैं थांका सेवक थे मांका स्‍वामी। कृपा करो मारा अन्‍तरयामी।।10।।

 

गरूजी बड़ पीपल आमली आम्‍बा। चम्‍पेली का डाला बहुत ही लाम्‍बा।।

दाड़म दाख चन्‍दन चंदा। कस्‍या रूखा नीचे देवा दळीचा।।

 

मोटा मोटा रूख आपके छन्‍दा। सातू ही जीव आपके जन्‍दा।।

चौकी चादर चन्‍दन चढ़ावा। आप मांगो सोही हाजर लावां।।11।।

 

भीम उवाच

 

कहवे भीम सुणो अन्‍तरयामी। सेवा में नहीं पड़बा दा खामी।।

हुकम करो तो गरू धरती धुजावां। गिरी मेरू को पकड़ हिलावां।।

 

केरू दु:ख दीदो व्‍हे तो पकड़ मंगावां। दरजोजन का शीश उड़ावां।।

बारा बरस से आया गरू दाता। मौन ढ़ाब कई ऊबा अन्‍दाता।।

 

कहो गुरां सा थाका मन की। माता कुन्‍ता फेरू बिलखी।।

सोगन खाया गरू बचन सुणाऊ। आप न बोलो तो मैं भी मर जाऊं।।12।।

 

आप कहो जतरा जोजन जाऊ। भांत भांत का भोजन लाऊ।।

खण्‍ड पर खण्‍ड का मेवा लाऊ। अनफल बनफल रसफल लाऊ।।

 

खीर खांड खुदिया पर खावो। दुध दही में घीरत मिलावो।।

मन में आवो जो काम भळावो। अंग में आवे जो औरी मंगावो।।

 

सुख दो शरीरा सन्‍तो को थाकी काया। खबर पड़ेगी मांने काना सुणाया।।

कहो गरूजी वां घरां की बातां। कई कीयो थाने केरवा आळा।।

 

अन्‍न पाणी हिया नुवासा।

सात शरीरा में पड़ गया सांसा।।13।।

 

दुर्वासा उवाच

 

अब मारा दिल की दुरमत दाखू। सांचे मते हो तो बारे भाखू।।

थाके खातर मैं बन में भागो। मैं ही लगायो करणी को दागो।।

 

असूरा तणो खन्‍दायो आयो। थांका भाया मने गणो सतायो।।

आज को भाण ऊगो अविनासी। मा पर पड़गी केरवां की फांसी।।

 

कड़वे मीठे काम न कांई। भोजन लिख्‍यो या पुडक्‍या मांई।।

या में निमजे जो भोजन पाऊ। और भोजन नहीं अंग लगाऊ।।

 

सवा पहर में आम्‍बो ऊगावो। सवा पहर में साल पकावो।।

सवा पहर में धेनू दूवावो। जदी धरम का पुत्र कुवावो।।

 

अतरी करो तो मैं भेजन पाऊ। नितर श्राप देय पाछो जाऊ।।

धूणी पाणी याही तापू। सत् हारो तो सही श्रापू।।14।।

 

भक्ति हेवे तो पुड़की जेलो। सत् भक्ति से आम उगेलो।।

यह बात निज मन में जेलो। थे तो धरम संग बांधो बेलो।।

 

सत् का पूत धरम का नाती। गरू बचनां का पूरा ख्याती।।

नहीं दीखो थे कपटी काचा। झटपट बोलो कहो मुख बाचा।।15।।

 

पांडव उवाच

 

गरूजी कला तो केरवा कीदी। गरू दुर्वासा माने ला दीदी।।

काल झंझाल केरू जाप्‍या। जाने अन्‍दाता कां न सरप्‍या।।

 

भोम अठारा से कण भरिया। नहीं होवे जाले बिन हरिया।।

बल्‍या बीज धरण नहीं जेले। कण बिना कूपल किस विध मेले।।

 

मरिया मुर्दा जीवे नहीं पाछा। संसार सती व्‍हे जावो सांचा।।

केरवा दीदा आप बिचार्या। ये सत् कोई हार्या न सार्या।।

 

केरवा मेली अब पांडवा जेली।

खोल पुडक्‍या मुख आगे मेली।।16।।

 

कुन्‍ता देवे गुरां ने हेला। बना मौत थारा भगत मरेला।।

ओ परासण आपने हेला। दीज्‍यो आप पांडवां ने जेला।।

 

बेर्या रा जहर जरे नहीं जार्या। ओ सत् स्‍वामी सरे नहीं हार्या।।

दोय कर जोड़ ऊबा गरू आगे। भूखा जावो तो दोष गणो लागे।।

 

आप जीमो जदी मैं भी खावां।

न जीमो तो सभी मर जावां।।17।।

 

दुर्वासा उवाच

 

चेला मारा थे हिम्‍मत मत हारो। थाकी माकी अर्जी भेली पुकारो।।

आप सती मैं सत् का साधू। बरत करो शिवरात का आदू।।

 

बरत करो शिवनाथ शंकर का। बचन न जावे फरता फकड़ का।

किस नियत का परच्‍या पाया। भूल्‍या आम थाके द्वारे आया।।

 

थाकी करणी का परच्‍या पूंगे। अवसी आज थाके आम्‍बा ऊगे।।

तीन पहर में त्रिलोकी नाथ तारे। जुग जुग पंडवां ने चरणां में ऊबारे।।

 

भीड़ पड्या तो अलख नुवाजे।

संता का बचन संता के साजे।।18।।

 

कुन्‍ता उवाच फूला मालण से

 

मूं थने बूजूं ऐ फूलाबाई। काम पड्या था कने आई।।

सतगरू आया लाया अचम्‍भो। कूकर ऊगे भून्‍योड़ो आम्‍बो।।

 

भाऊ उगाऊ राखू आले ओड़े। बारा बरस से आम्‍बो मोड़े।।

बारा बरस कुण ने आवे। मारा पांच ही परलां में जावे।।

 

सात बार में भाऊ उगाऊ। छटे महीने केरी लगाऊ।।

छ: छ: महीना कुण ने आवे। भूखा गरू अन्‍न न खावे।।

 

आम्‍बो ऊगे जदी गरूजी जीमे। इस विध कुन्‍ता बोले धीमे।।

सवा पहर में ऊगत नाहीं। चाहे लाख जतन कर बाई।।

 

सन्‍मुख श्‍याम गरू दुर्वासा। थाके आम्‍बो उगवां की आशा।।

हाथ जोड़ मालण केवे फूली, सतगरू बिना जगत सब भूली।।

 

गरू देवन का कहिये देवा। धन्‍न भाग जो सतगरू सेवा।।

थे मन माये मती घबराओ। सतगरू सन्‍मुख शुभ फल पावो।।19।।

 

ऊबी कुन्‍ता देवे हेला। नाथ दीज्‍यो मारा पंडवा ने जेला।।

आवो आवो मारा अरजुण बाला। आवो आवो मारा भीम भडियाला।।

 

आवो आवो मारा सहदेव जोशी। हरि का मत लिख्‍या व्‍हे जो होसी।।

आवो आवो मारा जेठल सतधारी। सत् के काज जुतो नर नारी।।

 

आवो मारा नुकला पंचोली।

जा बैठो सतगरू की जोली।।20।।

 

दोय कर जोड़ माता कुन्‍ता ऊबी। मारा पांचा ने तारबा ढबज्‍यो थे भी।।

देवी देवता सभी पधारो। भीड़ पड्या थाका भगत उबारो।।

 

हाथ जोड़ कुन्‍ता गुरां सामी आई। आई गुरां ने शीश नमाई।।

करो उतावल विलम्‍ब मत कीज्‍यो। दशो दिशा की गुहली दीज्‍यो।।

 

चौको देकर करी चतराई। आद्या शक्ति इष्‍ट से आई।।

अगर कपूर धूप दीज्‍यो धरणी। निज मन से भाखो निज करणी।।

 

हर प्रताप हिम्‍मत मत हारो।

आपणी आपणी सब अरज मुजारो।।21।।

 

भर चमठी क्‍यारी गार गरोळी। देवी देवता बैठा है डोळी।।

चार खूंटा की चारू क्‍यारी। सातू सती पर्दे पणिहारी।।

 

सुरग लोक से सुलखणा आई। खण्‍डा खण्‍डा की बिजासण लाई।।

तीन क्‍यारी में पुडक्‍या मेली। चौथी क्‍यारी में बैठा गरू बेली।।

 

करे आरोध गरूजी के आगे।

गरू दुर्वासा थाने कहूं सागे।।22।।

 

कुन्‍ता उवाच

 

नाय धोय कुन्‍ता हेगी त्‍यारी। हाथ भर लाई गंगाजल जारी।।

मूं थने सींचू आम मुरारी। राखो लाज हमारी।।

 

मैं धरणी के हाथ लगाऊ। मुझ में बीती जो मैं बताऊ।।

कपट केरवा कीनो भारी। ओ सत् स्‍वामी जी पार उतारी।।

 

सत् का चारू पुत्र हमारे। ये जनम्‍या निज गर्भ द्वारे।।

चार ही पुत्र बाली बेस में जाया। नुकलो सहदेव मादका जाया।।

 

कर्ण हियो जद पंड कुंवारो। नुकलो पुत्र मादका वालो।।

पांचूं पांडवां की माता गणीजू। सात जीवां में सती सुणीजू।।

 

पतिव्रता एक पुरूष की नारी। सील स्‍वभाव लखण बहु भारी।।

मन के मते काम नहीं कीना। गरू बताया सोही कीना।।23।।

 

शिव शक्ति मारी देह उपाई। सर्व सोना की देह बणाई।।

खूब मेल्‍या मामे रूप का बाना। ऊपर सूरज तपे असमाना।।

 

ऊपरे तपे आभा अंजन। करती मूं हाथ पांव का मंजन।।

बस्‍तर हीण होय संजोयो सपाड़ो। मंत्र पढ़यो जदी मारो अंग उगाड़ो।।

 

बैठ द्वारे दातण कीदा। जदी सूरज माने दरसण दीदा।।

देख रूप अस्‍ट वांका डगीया। घड़ीक रथ वांका ऊबा ढबिया।।

 

उड़ पतंग मारा कान में समाया। कर्ण क्‍वारी कान सूं जाया।।

न मैं गई न सूरज आया। वे कलंक लागा मारे बना कमाया।।

 

असली जीव अमोलक आण्‍यो। राजा पण्‍ड बना पुरूष नहीं जाण्‍यो।।

संत मा कर पूज्‍या अनेक। सबला न आया मारी सेजा एक।।

 

इ सत् से आम उग मुरारी। उगा आम करनी को क्‍यारी।।

उगा आम अपनी आसा। भला पधार्या माके द्वार दुर्वासा।।

 

चावल भसम कूपल मेली। भरी खाल भई धीन अनबेली।।

स्‍वर्ग से फूल बरसण लाग्‍या। पंडवां के घर भाग भल जाग्‍या।।

 

बाजा अनन्‍त गगन में बाजे।

धन कुन्‍ता के प्रभु आय बिराजे।।24।।

 

जेठल उवाच

 

नाय धोय जेठल हेग्‍या त्‍यारी। हाथ भर लाया गंगाजल जारी।।

 

मूं थने सींचू आम मुरारी। राखो लाज हमारी।।

 

ओ सत् भाखे जेठल राजा। हाथ सिवरणा लीदी ताजा।।

नौ बेलां में नरहर नाया। कलप्‍या जदी मारे कायम आया।।

 

दशवे देव द्वारे पाया। छूटा राज हस्‍थनापुर पाया।।

दोय कर जोड़ एक पग ठाड़ो। सत् नहीं हारे मत को गाठो।।

 

ऐसा लेख लिख्‍या मारे बांका। राज होय चाल्‍या नहीं बांका।।

माता कुन्‍ता के ओदर आयो। सिमरण ध्‍याण में वाही संजोयो।।

 

पलक न चूकूं मारी करनी। सुद बुद बहुत कमाई करनी।।

अगर कपूर धूप ले धाऊ। कंकू केशर का तिलक चढ़ाऊ।।

 

आठ पहर मैं चंवर ढुलाऊ। भली वस्‍तु का भोग लगाऊ।।

यू शिवजी के चढ़ाऊ चावल। भाया ने मूं सूप दिया रावळ।।

 

राजपाट गादी पर बैठो। पाप दोष मारे लागो न जेठो।।

कीदा काम नेणा का देख्‍या। सभी भायां से प्रेम गणा राख्‍या।।

 

बेरी मित्र एक कर जाण्‍या। राजा होकर गरव नहीं आण्‍या।।

काळा तला का भोग नहीं लीना। विधवा के कूंता नहीं कीना।।

 

कुम्‍भ कलस का डण्‍ड नहीं ठारिया। जुवा रमिया जीत्‍या न हार्या।।

सूबर घोड़ी जीण नहीं कसिया। निरधन देख कदी नहीं हंसिया।।25।।

 

बारा बरस माता का गर्भ में रियो। तो भी माता ने दु:ख नहीं दियो।।

कोळ बचन कर बारे आयो। छोटा को मूं बड़ो कुवायो।।

 

राजपदवी में रसिया न राजा। घरे बाजता छतीसूं बाजा।।

न्‍याव से न्‍याव अन्‍याव से अपूठा। न कोई सांचा न कोई झूठा।।

 

राजपाट मैं कीदा ऐसा। जुग द्वापर में हेता जैसा।।

इ सत् से आम्‍बा भद्द मुरारी। लाज राखे मारो कृष्‍ण मुरारी।।

 

बदिया आम डगमगिया डाळा।

आन बैठा सुवा बन खण्‍ड वाळा।।26।।

 

भीम उवाच

 

नाय धोय भीमजी हेग्या त्‍यारी। हाथ भर लाया गंगाजल जारी।।

मूं थने सींचू आम मुरारी। राखो लाज हमारी।।

 

ओ सत् भाखे भीमो मारू। अडिया पछे कदी नहीं हारू।।

भोजण है सो सब खाजाणो। कदी नहीं मारो पेट भराणो।।

 

गणां खादा मैं खाण्‍ड खपाना। गणां खादा तैतीस सारणां का भाना।।

अस्‍सी पकाला पाणी पीदा हरका। तोइ न गई मारे तस की तरका।।

 

ढाई ढाई मण का भाखर निंगल्‍या। कोइ सबला मारी सींव में न सलिया।।

कजली बन में कुंजर केता। मैं जानता केरड़ा पाड्या जैसा।।

 

चतर नर मने मूरख जाण्‍यो। क्रोध अहंकार कदी नहीं आण्‍यो।।

कुम्‍भकरण की खोपड़ी में डूबा। जिण दिन मांके सांसा पूगा।।27।।

 

कोइक केता ओ तो डाकी। किसी बात की गम नहीं राखी।।

चोखा देख तोड़ फल राख्‍या। भायां खादा जदी मैं भी चाख्‍या।।

 

मुझ में बल जिसका नहीं पारा। दस हजार हाथी जितना बल हमारा।।

हिम्‍मत कर मैं धरणी तोली। अडोल मडोल डगी नहीं डोली।।

 

प्रथम बार एक कर धारी। सिद्ध सुरापणो श्‍याम सुधारी।।

दूजी बार लीनी कर दूजे। मइला की बात कोइ नहीं बूझे।।

 

तीजी बार शीश पर मेली। धवल पीठ मारी काया जेली।।

चमकी बीज आकाश उजाली। भीम शरण आवे बड़ भागी।।

 

इ सत् सूं आम्‍बा मोड़ मुरारी। लाज राखे मारो कृष्‍ण मुरारी।।

मोड्या आम करनी की क्‍यारी। केरवां से पांडू सदा अदकारी।।28।।

 

सहदेव उवाच

 

नाय धोय सहदेव हेग्या त्‍यार। हाथ भर लाया गंगाजल जारी।।

मूं थने सींचू आम मुरारी। राखो लाज हमारी।।

 

ओ सत् भाखे सहदेवो जोशी। हरि का मन लिख्‍या व्‍हे जो होसी।।

रेहणी से रेहता मूं रहणी। कदी न की जो आज मने कहणी।

बूज्‍या मोरत बेर्या ने देतो। अण बूज्‍या भायां ने न केतो।।

 

खारा मीठा की खबर न खाटी। पूरा गुरां पढ़ाई मने पाटी।।

पांडवां की बात पल पल में फेकू। हर लखे मूं दफ्तरा में देखूं।।

 

बावन अक्षर महीना बारा। उगम निगम का सूझे सारा।।

पन्‍द्रह तिथि पल पल की पोथी। मुख सूं बात कही सब होती।।

 

सब संसारी आय कर बूझे। ज्‍यांरा दरद दफ्तरां में सूझे।।

चांद सूरज का ग्रहण बताऊ। पुल घड़ी भिन्‍न भिन्‍न समझाऊ।।

 

पल पल देखूं पल पल पेखूं। दफ्तर लिख्‍या अन्‍दर देखूं।।29।।

 

लाख का महल में अगन जलाई। उल्‍टी अगन मांके लारा आई।।

भीम कियो सुण अगनी माई। आगे आई तो राम दुहाई।।

 

सवा लाख की भेंट चढ़ाऊ। इसमें फरक कभी नहीं लाऊ।।

विष का लाडू बेर्या दीदा। खुदिया लागी मैं भी खादा।।

 

जिण दिन मरता मंगजी का मार्या। जिण दिन तो भीमजी उबार्या।।

इ सत् से आम्‍बा फलद मुरारी। लाज राखे मारो अलख निजारी।।

 

फळियां आम करनी की क्‍यारी।

केरवा से पांडू सदा अदकारी।।30।।

 

अर्जुन उवाच

 

नाय धोय अर्जुन हेग्‍या त्‍यारी। हाथ भर लाया गंगाजल जारी।।

मूं थने सींचू आम मुरारी। राखो न लाज हमारी।।

 

ओ सत् भाखे राजा उरजण। कुन्‍ता को पूत इन्‍दर को फरजन।।

चढ़ती बूंदा समंदा की सरजा। उपजती लहर हिया की हरजा।।

 

धनुष बाण ले हियो शिकारी। सब भायां में राजा अदकारी।।

धनुष बाण लेय बन में जातो। जीव जन्‍तर का दरसण पातो।।

 

दौड़ दौड़ मारे मुख आगे मरता। टाल टाल ने मैं पग धरता।।

नहीं तो कदी जीव सताया। रीते हाथ कदी नहीं आया।।

भायां की लार कदी नहीं कोप्‍या। राजा जेठल की कार नहीं लोप्‍या।।

हरमा भरयाणी आकर भेटी। काण मरयाद कदी नहीं मेटी।।

 

माता ने माता कुन्‍ता जाणी। हरमा ने बीन कर आणी।।

इ सत् सूं आम्‍बा जाल मुरारी। लाज राखे मारो कृष्‍ण मुरारी।।

 

जाल्‍या आम करनी की क्‍यारी।

केरवां से पांडू सदा अदकारी।।31।।

 

नकुल उवाच

 

नाय धोय नकुलो हेग्‍यो त्‍यारी। हाथ भर लायो गंगाजल जारी।।

मूं थने सींचू आम मुरारी। राखो न लाज हमारी।।

 

ओ सत् भाखे नुकलो सायर। भक्ति के काज कदी नहीं कायर।।

मारी माता मुरगां की बादी। ज्‍यांके जनम्‍यो नुकलो अपराधी।।

 

मैं तो दाता करमा को करियो। जनम्‍यो जदी राजा पंड मरियो।।

लेकर केरड़ा बन में जातो। सुबह जातो शाम को घर आतो।।

 

अठोतर केरू बड़ल्‍ये आता। छ: छ: महीना बन्‍दया रिया भाता।।

केरू कपटी गाल गलाता। वे भाता मूं पाछा लाता।।

 

छ: महीना रियो अन्‍न बना उणो। कदी न कवायो भायां को पूणो।।

भेमाता यूं गाल्‍या आखर। चार पहर चारू भायां को चाकर।।32।।

 

अखे बड़ का डाला दूरा। सात समंदा से दीखे दूरा।।

पहली रे पहर अदबिच को ओड़ो। माने लागे गुरांसा मोड़ो ही मोड़ो।।

 

अदबच में बीच अरथ न जोई। नाम गण पण नुकलो कहाई।।

थारे जोड़े रे बैठी मारी जामण। पुरूष दोय एक है कामण।।

 

पांडवां की माता माने नहीं जायो। नुकलो आद दूर से आयो।।

मैं जनम्‍या जदी पिताजी समाया। पिता की हत्‍या से नुकला कहाया।।

 

पराये काज पग दीदा न पाछा।

बेर्या में जाय चराया बाछा।।33।।

 

बड़ में रहवे धनुष टकाणो। फेके तीर जदी मैं आणो।।

भात लाय केरवा को दीना। केरू रे भोजन खाबा नहीं दीना।।

एक दिन वहां भीमजी आया। नुकलो सभी हाल सुणाया।।

अब भीमजी करिया ऐड़ो। खाय भात सब कियो निबेड़ो।।

 

केवे भीमजी चढ़ो भायां ऊंचा। चढि़या केरू पटक्‍या नींचा।।

गांठ बांधकर घर ले आया। मासी जी के सामे फंकाया।।

 

मासी सम्‍भालो थांका बेटा। हमेशा करता नुकला से खेटा।।

मार्या बना छोड़तो नाहीं। छोड्या जाण मासी जाया भाई।।

 

घायल देख गंधारी रिसाई। आपस में गुरां राड़ सलगाई।।

उठ गंधारी बोर खावण लागी। बोरड़ी जावे ऊंची और आगी।।

 

पट्टा खांच पांव तळे दीना। ऐसा काम गंधारी कीना।।

ऊंची चढ़कर बोर हिलाया। काचा पाका सभी गिराया।।

 

केहवे कृष्‍ण सुणो गंधारी। कलू मैं करू बछुआ गरधारी।।

इण सत् से आम्‍बा पाक मुरारी। हार्यो नुकलो अर्ज गुजारी।।

 

पाका आम कलूम्‍बी केरी।

डाल डाल में गहरी गहरी।।34।।

 

द्रोपदी उवाच

 

नाय धोय द्रोपद व्‍हे गई त्‍यारी। हाथ भर लाई गंगाजल जारी।।

मूं थने सींचू आम मुरारी। राखो न लाज हमारी।।

 

ओ सत् भाखे द्रोपद राणी। लाज राखे मारो सारंग प्राणी।।

आया आरोध्‍या परच्‍या पूंगा। आज मारा घर आम्‍बा ऊगा।।

 

बीस भुजा से रही कंकाली। गला में माला रूण्‍ड रूण्‍डाली।।

मैं सती शक्ति आद कुंवारी। मार्या अनेक रही मैं न्‍यारी।।

 

बली को छलिया रावण को मार्या। एक्‍कासुर का शीश उतार्या।।

पंडवां को छलबा ने आई। अठे न चाली मारी चतराई।।

 

द्वारका से मेली कृष्‍ण मुरारी। घर पंडवां के बाजू नारी।।

लोग कहे मने पांचों की नारी। सत् पुरूषा में अकन कुंवारी।।

 

आद्या शक्ति आगे हेती। जा देवल के परकमा देती।।

मालण होय ओड़लो लीदो। भलायो हीड़ो सकल को कीदो।।

मने मल्‍यो जो पांडवा ने दीदो। पांडवा बना मैं नहीं खादो।।

 

इण सत् से आम्‍बा उतर मुरारी। लाज राखे मारो अलख निजारी।।

उतरिया आम डाल से छटकिया। अदबिच आम्‍बा आय अटकिया।।

 

कहे कुन्‍ता ये कैसे अटकिया। थारा केहणा भेर कोई घटग्‍या।।

एक दिन सासूजी मारे धीन बियासी। जीको बच्‍चो मूं गोद में लाई।।

 

वे बाला मा पर नजर कीनी। ओ परासन इस विध लीनी।।

अजमत सजमत रहती दूरी। बेराट नगर में करती मजूरी।।

 

बेला कुबेला बाट बहती। लाय मंदरिये परकमा देती।।

घूंघट घाट हलाहल हलके। चंगा चीर चोवटे चलके।।

 

मन्‍द कीचक डाणो आयो। आकर मारो पल्‍लो समायो।।

ई दसा नाळ वी दसा नाळूं। सांचे श्‍याम बढ़ायो मारे साळू।।

 

यूं तो रहगी पाप के आगे। जीको लाछण जीणे लागे।।

वो दन मारो दुनिया देखे। वो दन जावो अलखजी के लेखे।।

 

घरे जाय भीमजी ने कीयो। डाणा ने मार थम्‍भ हेटे दीयो।।

इ सत् से आम्‍बा उतर मुरारी। लाज राखे मारो कृष्‍ण मुरारी।।

 

उतरिया आम अब भरो चंगेडिया।

कटकी पांचां के कलंक की बेडिया।।35।।

 

कहे माता कां करो मोड़ो। नाय धोय कर करो रसोड़ो।।

चावल पाके धीन जब उठी। यह बातां तो सत् की सूठी।।

 

चोको देकर करो चतराई। भांत्‍ भांत का भोजन बणाई।।

थाल परूस द्रोपद ले आई। जीमो देवता भोजन बणाई।।

 

माता कुन्‍ता चरण पखारे। द्रोपदी गुरां की आरती उतारे।।

पांचूं पांडू भाव ढुलावे। गणां हेत से गरूदेव जिमावे।।

 

आमरस मेवा मीठा। नजर्या का फल पांडवा से दीठा।।

पांडवा की बेर प्रेम गरू आया। धन पांचे आमरस गाया।।

 

आमरस कोई जुगत से गावे।

जांके घरे श्रीकृष्‍ण आवे।।36।।

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जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...