:: पंच हथाई ::
धीरे धीरे बोल पार्वती,
थू है मारी राणी।
गजानन्द ने साथे ले ले,
बोले मीठी वाणी।।1।।
मारे लहर उठी रे गंगा तट की,
थारे लार चालूलां मारे जचगी।
शंकर के के जीब मारी
घसगी ।।टेर।।
थे हो भोला भण्डारी जी,
नत का पीवो भंग,
गजानन्द ने कैसे ले लू,
करसी मुझको तंग।।
मारा हिया में करोत पूरी
धसगी।।2।।
चले धूंधला बाव,
चले नन्दी और नाला।
कदी पिलाने बेल,
कदी शिव चाले पाळा।।
गया गांव के मांय,
जाकर अलख जगाई।
आल शंकर की कथा,
प्रेम से सुण लो भाई।।
यहां पर न्याव सत्य का होता,
सुणो सती महाराणी।
करे दूध का दूध,
पाणी का पाणी।।
यहां पाते दण्ड अन्यायी,
मान भवानी मान ।।1।।
थाने शंकर कह समझावे,
मान भवानी मान।
मान भवानी मान,
गोरजा मान भवानी मान।।
थाने भोला यूं समझावे,
मान भवानी मान।।टेर।।
अन्तरध्यान हुए शिव शंकर,
एक जाट घर आये।
जैसा रूप जाट घर वाळा,
वेसा रूप बणाये।।
घर की सांकल जा खटकाई,
मान भवानी मान।।2।।
असली जाट खेत से आया,
उठ जाटणी उठ।
तस्या मरता का कंठ सूखग्या,
ला पाणी की घूंट।।
भीतर जाटणी घगराई,
मान भवानी मान।।3।।
गुस्से में दरवाजा खोला,
देखा जाट का रूप।
एक रूप का दोय देखकर,
गई जाटणी सूख।।
अब तो होने लगी लड़ाई,
मान भवानी मान।।4।।
दोड़ी जाटणी गांव बीच,
पंचा से जाय पुकारी।
न्याव करो अन्याव हो रिया,
कुण की हूं घर नारी।।
दो दो पुरूष लड़े घर माई,
मान भवानी मान।।5।।
एक पंच यूं उठकर बोला,
अलग अलग बतळाले।
अन्तर घट की बात पूंछ,
असली को पतो लगाले।।
दोनों एक ही बात बताई,
मान भवानी मान।।6।।
एक पंच यूं उठकर बोला,
घड़ा एक मंगवालो।
तीन बार जो घुसे घड़े में,
उसको नार भळा दो।।
झगड़ा बन्द करो मेरे भाई,
मान भवानी मान।।7।।
शंकर बोले तीन बार क्या,
तीस बार भळ जाऊ।
मेरा घर और मेरी जाटणी,
पंचा ने बतलाऊ।।
दो बार घुसे घड़ा के माई,
मान भवानी मान।।8।।
तीजी बार जब घुसे घड़े में,
ऊपर दे दिया ढकणा।
यह भी बेटा भूल जायेगा,
पर नारी को रखणा।।
जाट ने घर नारी सम्भलाई,
मान भवानी मान।।9।।
एक पंच यूं उठकर बोला,
कुछ लकडि़या मंगवालो।
इसमें जन्द बड़ा है भारी,
अगनी तुरत लगालो।।
सुण के पार्वती घबराई,
मान भवानी मान।।10।।
असली रूप धर गोरा बोली,
न्याव मेरा भी कीजो।
अपना पति की रक्षा खातिर,
घड़ा दान में दीजो।।
सुण के पंच लोग मुस्काये,
मान भवानी मान।।11।।
इसमें जन्द बड़ा है भारी,
सुणो सती महाराणी।
इससे तो तुम दूर ही रहणा,
गळे पड़ेला थारी।।
सुण के पार्वती मुस्काई,
मान भवानी मान।।12।।
जन्द नहीं यह है शिव शंकर,
है भोला भण्डारी।
ये है मारा प्राण प्यारा,
मैं हूं इनकी नारी।।
न्याव की बात देखबा आई,
मान भवानी मान।।13।।
परकट नाथ हुए शिव शंकर,
धन धन पंचा भाई।
कलजुग में अन्याय करेला,
पंच लोग अन्यायी।।
ऐसी शिवजी ने फरमाई,
मान भवानी मान।।14।।
पंच बगड़ पंचायत बगड़ी,
कलजुग थारी माळा।
कन्या दलाली रिस्वत खोरी,
चूक नहीं गोपाला।।
कविता ‘’राधेश्याम’’ बणाई,
मान भवानी मान।।15।।
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