थू हे नुगरी नार,
मोहे जल भरबा दे री।
लागे थारी छांट
चुवेगी घाघर मेरी ।।
थू पीछे भर लीजिये,
अब थने कई होत अबार।
अतरी बात सुगरी कियो तो,
जल उठी नुगरी नार।।
दोनूं बेहना जगड़ पड़ी ।।1।।
या नुगरी रे सुगरी नार,
दोनों बेहना जगड़ पड़ी।
जगड़ पड़ी रे भाया खूब लड़ी,
या कूड़े रे चढ़ी रे पणिहार।।
जवाबा जोर लड़ी ।।टेर।।
थू हे सुगरी नार,
कठा से विष्णु बण आई।
आखिर मारी जात करे क्यू चतराई,
ऐसी भक्तन होवे राम की तो।।
कूड़ो थारे न्यारो खुदाय ।।2।। दोनूं बेहना
थू हे नुगरी नार,
धरम की बात न जाणे।
हदरय नहीं हरिनाम,
आपणी बुद्धि बखाणे।।
गंगा न्हाई न गोमती,
पुष्कर कियो न स्नान।
ऐसी नुगरी नार को मूंडो,
है गधी के समान।।3।। दोनूं बेहना
बोली नुगरी नार,
मने काई शिक्षा देवे।
मानूं नहीं थारी बात,
छानी क्यूं नी रेहवे।।
थारी बातां में आऊ नहीं,
चाहे ढूंढी पटक मर जाय ।।4।। दोनूं बेहना
एक दिन मारो परण्यो,
साधू ले घर आयो।
मैं हूं बन्दी राम की,
वांने आंख्या काड डरायो।।
टाबरे टोली पटकियो,
और चूल्हे बुझाई आग।
या थारा बापा ने बारे काड दे,
नीतर थारो घर जावेलो भाग ।।5।। दोनूं बेहना
बोली सुगरी नार,
पिया को कहणो मानूं।
मारे पति है एक,
दूसराे एक न जाणूं।।
पतिव्रता के एक पिव है,
पार ब्रह्म भगवान ।।6।। दोनूं बेहना
थू है सुगरी नार,
रात दिन पाखण्ड करती।
पाणी पीती छाण,
स्नान कर रोट्या पोती।।
कुल थारो सारो बगडियो जो,
न्हाय न्हाय रोट्यांं खाय ।।7।। दोनूं बेहना
एक दिन मारो परण्यो,
माला ले घर आयो।
मैं हू बन्दी राम की,
वांने आंख्या काड डरायो।।
रेटियो भचोडियो भीत के,
कण कण कियो अनाज।
ई माला ने बारे फांक नीतर,
पीयर जाऊली भाग ।।8।। दोनूं बेहना
मारो परणियो गणो सातरो,
मारा किया में चाले।
मैं रेऊ खुटी ताण ने,
वो उठकर पाणी गाले।।
टाबर टोली राख लेवे,
करे अणूतो काम।
गोबर थापडिया वो ही थापे,
मने जीमाण पछे खाय ।।9।। दोनूं बेहना
धाऊ गोगो पीर,
और दूसरो न धाऊ।
करू कड़ाई खीर,
एकेली बैठी खाऊ।।
छोरा छोरी थोड़ीक मांग लेवे तो,
मूंडा पर देऊ ठकराय ।।10।। दोनूं बेहना
आ गई नुगरी नार,
सुगरी से शिक्षा लीनी।
रंग दीनो अपनो डाल,
वांने अपनी सी कर लीनी।।
नुगरी सुगरी नार ने गावे ''रामचंद्र'' कथ राव।।11।।
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