नामा थारो घर नारायण छायो,
यो तो भगती बढ़ावण आयाेे।।टेर।।
आक कटावण बन में चाल्यो,
उल्टो ही पांव कटायो।
फाड़ उपरणी पाटो जो बांध्यो,
मन ही मन पछतायो।।1।।
सोने का डंडा रूपा का भरडा,
ताम्बा को पाट डलायो।
नौ खण्ड ऊपर एक जो केलू,
ओळ अनोखी लायो।।2।।
पो फाटी दन उगण लागो,
लोग अचाम्भे आयो।
बादशाह जी यूं उठ बोल्या,
लंका लूट कर लायो।।3।।
और छीपा तो बहुत बसत है,
नामदेव जी नाम धरायो।
कहत कबीर सुणो भाई साधू,
भगत हरि के मन भायो।।4।।
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