जानकी रही बिना भरतार,
धनुष मारो हो रियो दावेदार ।।टेर।।
देश देश के राजा आयो,
लम्बी भुजा पसार।
जौ भर धनुष डगियो नहीं वासे,
हो रही हाहाकार ।।1।।
राजा जनकजी यूं उठ बोले,
सुणो सभी सिरदार।
क्षत्री वंस में रहा न कोई,
डूब गई मझधार ।।2।।
तब लछमण जी यूं उठ बोले,
सुणो जनक महाराज।
हम बालक रघुवंश मणी के,
बोलत बचन सम्हाल।।3।।
रामचंद्रजी ने धनुष तोड़ा,
धनुष रियो गरणाय।
तुलसीदास आशा रघुवर की,
लीनो कण्ठ लगाय ।।4।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें