मुखड़ा क्या देखे दरपण में,
तेरे दया धर्म नहीं मन में ।।टेर।।
कागज की एक नांव बणाई,
जाय छोड़ी एक जल में।
धर्मी धर्मी पार उतरग्या,
पापी डूबा पल में ।।1।।
पेच मार कर पगड़ी बांधे,
तेल डाल जुलफन में ।
इस काया पर धोब उगेगी।
गऊ चरेगी बन मेें ।।2।।
हाथ कड़ा कानों की बाली,
लेय उतार पल छिन में ।
काची काया काम नहीं आवे,
नंगी धरे अगन में ।।3।।
कोडी कोडी माया जोड़ी,
जोड़ धरी अगन में।
कहत कबीर सुणो भाई साधू,
रे गई मन की मन में ।।4।।
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