सीताराम न जपो रे तुलसी sitaram ne japo re tulsi



सीताराम ने जपो रे भजो तुलसी ।।टेर।।


सांज पडिया दिन गयो भवन में,

तुलसी सोच भयो रे।

गाय बाछूूूूड़े गवाड़े बडिया,

लेय लकडिया तुलसी सासरे गयो रे।।1।।


भव सागर में नदिया बहत है,

मुरदो जात बह्यो रे।

तुलसी जाण्‍यो नांंव पुरानी,

उन पकड़ तुलसी पार तो भयो रे।।2।।


आस पास महलां के फरगियो,

दरवाजा नहीं पायो।

लाल गोखड़े नाग लटकियो,

उनको पकड़ तुलसी महलां तो गयो रे।।3।।


जैसी प्रीती माे से कीनी,

वैसी राम से नाहीं।

चल्‍यो जाय बैकुण्‍ठ लोक में,

पल्‍लो नहीं पकड़े तुलसी थारो अब कोई रे।।4।।


थू तिरीया मारे धरम की माता,

थे मने ज्ञान दियो रे।

''तुलसीदास'' आशा रघुवर की,

सेजा तुलसी कबू ना गयो रे।।5।। 




   

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